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दीपावली पूजन विधि

दीपावली धन और समृद्धि का त्यौहार हैं, जिसे आमतौर पर दीवाली भी कहा जाता है, हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को सजाकर रंग बिरंगे बत्तियों और दीपों से सजाते हैं। दीपावली पूजन में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाज होते हैं। यहां कुछ सामान्य पूजन विधियाँ दी जा रही हैं:

इस त्यौहार में गणेश  भगवान और माता लक्ष्मी के साथ ही साथ धनाधिपति भगवान कुबेर, सरस्वती और काली माता की भी पूजा की जाती है। सरस्वती और काली भी माता लक्ष्मी के ही सात्विक और तामसिक रूप हैं।  जब सरस्वती, लक्ष्मी और काली एक होती हैं तब महा लक्ष्मी बन जाती हैं।

सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन काल के16 संस्कार

सनातन धर्म के अनुसार  मनुष्य के जीवन काल के सोलह संस्कार होते है आइये जानते हैं इन सोलह  संस्कारों का मतलब और इनका महत्व।

 


गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तो जातकर्म च।

नामक्रियानिष्क्रमणेऽन्नाशनं वपनक्रिया॥

कर्णवेधो व्रतादेशो वेदारम्भक्रियाविधिः।

केशान्तः स्नानमुद्वाहो विवाहाग्निपरिग्रहः॥

त्रेताग्निसंग्रहश्चेति संस्काराः षोडश स्मृताः।

 

1. गर्भाधान संस्कार

हमारे शास्त्रों में मान्य सोलह संस्कारों में गर्भाधान पहला है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। गृहस्थ जीवन का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ठ सन्तानोत्पत्ति है। 

देवी कवच (Devi Durga Kavach)




॥ देवी कवच ॥



विनियोग –


ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् , दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥



ॐ नमश्चण्डिकायै ॥

अर्थ – ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।



[ मार्कण्डेय उवाच ]


ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥

अर्थ – [ मार्कण्डेय जी ने कहा ] पितामह ! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये ।

कीलक स्त्रोतम (Kilak Stotram in Hindi & Sanskrit)




 ॥ अथ कीलकम् ॥


ॐ इस श्रीकीलक मंत्र के शिव ऋषि, अनुष्टुप् छन्द, श्री महासरस्वती देवता हैं। 
श्री जगदम्बा की प्रीति के लिए सप्तशती के पाठ के जप में इसका विनियोग किया जाता है। 
ॐ नम श्चण्डिकायै॥


ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है। 
मार्कण्डेय जी कहते हैं – विशुद्ध ज्ञान ही जिनका शरीर है, जो कल्याण-प्राप्तिके हेतु हैं तथा अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र का मुकुट धारण करते हैं, उन भगवान शिव को नमस्कार है ॥1॥


मन्त्रों का जो अभिकीलक है, अर्थात् मन्त्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले शाप रूपी कीलक का जो निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिये। (और जानकर उसकी उपासना करनी चाहिये) यद्यपि सप्तशती के अतिरिक्त अन्य मन्त्रों के जप में भी जो निरन्तर लगा रहता है, वह भी कल्याण का भागी होता है ॥2॥

अर्गला स्तोत्रम (Argala Stotram) हिंदी अर्थ सहित

 ॥ अर्गला स्तोत्रम ॥



विनियोग – ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः , श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥


ॐ नमश्चण्डिकायै ॥

[ मार्कण्डेय उवाच ]


अर्थ – ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।

[ मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं – ]


ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥ 1 ॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि ।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ 2 ॥

जानें सुंदर कांड में वर्णित उनचास पवन (वायु) के बारे में

 जानें  सुंदर कांड में वर्णित उनचास पवन अर्थात (वायु) के  बारे में  

सुंदर कांड के 25वें दोहे में  तुलसी दास  जी  ने इसका वर्णन किए है । सुन्दर कांड में जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी, उस प्रसंग  के बारे में  लिखा है | कि


"हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास

अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।"


अर्थात :- जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो उनचासों पवन चलने लगे। हनुमान जी अट्टहास करके गरजे और आकार बढ़ाकर आकाश मार्ग से जाने लगे।


 इन उनचास मरुत का क्या अर्थ   है यह तुलसी दास जी ने नहीं लिखा है , इसका वर्णन वेदों  में  लिखा  हैं.  तुलसी दासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य होता है, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।

        

यह जानकर आश्चर्य होगा कि वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और सम वायु, लेकिन ऐसा नहीं है। 


जल के भीतर जो वायु है उसका शास्त्रों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।


ये 7 प्रकार हैं- 1. प्रवह, 2. आवह, 3. उद्वह, 4. संवह, 5. विवह, 6. परिवह और 7. परावह।

 

1. प्रवह :- पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणित हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं। 

 

2. आवह :- आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्य मंडल घुमाया जाता है।

 

3. उद्वह :- वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्र लोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है। 

 

4. संवह :- वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।

 

5. विवह :- पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है। 

 

6.परिवह :- वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षि मंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तश्रर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।

 

7. परावह :- वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।

 

इन सातों वायु के सात-सात गण (संचालित करने वाले) हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं-


 ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह  7x7=49, कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।

  

सनातन ज्ञान कितना अद्भुत ज्ञान है,  अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं परंतु उनमें लिखी छोटी-छोटी बातों का गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक बातें ज्ञात होती हैं।


 

Source 

सनातन धर्म ज्ञान

Palmistry - जाने हाथ देखते समय कौन सा हाथ देखे दायाँ हाथ देखे या बायां ?

 


हाथ देखते समय सामान्यतः  यह प्रश्न  उठता है कि हाथ देखते समय दायाँ हाथ देखा जाए या बायाँ ?

हाथ देखने के एक से अधिक मत है जो इस प्रकार से है -

प्राचीन वैदिक ज्योतिष  आधारित भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार स्त्री का बायाँ हाथ और पुरुष का दायाँ हाथ देखने का निर्देश दिया गया है।  प्राचीन शास्त्र मे यह भी संकेत मिलता है कि स्त्री यदि काम काजी महिला हो यानी वह आत्मनिर्भर हो तो उसका दायाँ हाथ देखा जाना चाहिए, इसके विपरीत  यदि कोई पुरुष बेरोजगार हो या आत्मनिर्भर न हो तो उसका बायाँ हाथ देखा जाना चाहिए।

जानें बद्रीनाथ की पूजा अर्चना के लिए पुजारी के लिए क्या योग्यता होती है?



1. बद्रीनाथ की पूजा अर्चना के लिए पुजारी ,  शिव पूजा के लिए प्रसिद्ध  केरल के नंबूदिरी ब्राह्मणों का एक तबका से  ही चुना जाता.
नंबूदरीपाद ब्राह्मण ही बद्रीनाथ  के  पुजारी सकते हैं. इन्हें शंकराचार्य का वंशज माना जाता है. इन्हें रावल कहते हैं.
2. केरल के नंबूदरीपाद ब्राह्मणों में से रावल का चयन बद्रीनाथ मंदिर समिति ही करती है.
3. इनकी  योग्यता कम से कम  ये है कि इन्हें वहां के वेद-वेदांग विद्यालय का स्नातक और कम से कम शास्त्री की उपाधि होने के साथ ब्रह्मचारी भी होना चाहिए.

4.  बद्रीनाथ में ब्रह्मचारी रहने तक ही कोई ब्राह्मण पुजारी पद पर रह सकता है.

5. उसे पूरे समय ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है, यानी स्त्रियों का स्पर्श भी पाप माना जाता है. 

वीडियो को अंत तक देखने के लिए धन्यवाद.
 

श्रीमद भागवत महापुराण - प्रथम स्कन्ध: - द्वितीय अध्याय:

श्रीमद भागवत महापुराण

प्रथम स्कन्ध: -  द्वितीय अध्याय:


"भगवत्कथा और भगवद्भक्ति का माहात्म्य"


श्रीव्यासजी कहते हैं ;- शौनकादि ब्रम्ह्वादी ऋषियों के ये प्रश्न सुनकर रोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा को बड़ा ही आनन्द हुआ। उन्होंने ऋषियों के इस मंगलमय प्रश्न का अभिनन्दन करके कहना आरम्भ किया ।


सूतजी ने कहा ;- जिस समय श्रीशुकदेवजी का यज्ञोपवीत-संस्कार भी नहीं हुआ था, सुतरां लौकिक-वैदिक कर्मों के अनुष्ठान का अवसर भी नहीं आया था, उन्हें अकेले ही संन्यास लेने के उद्देश्य से जाते देखकर उनके पिता व्यासजी विरह से कातर होकर पुकारने लगे—‘बेटा! बेटा!’ उस समय तन्मय होने के कारण श्रीशुकदेवजी ओर से वृक्षों ने उत्तर दिया। ऐसे सबके ह्रदय में विराजमान श्रीशुकदेव मुनि को मैं नमस्कार करता हूँ ।

श्रीमद भागवत महापुराण - प्रथम स्कन्ध: - प्रथम अध्याय:

 श्रीमद भागवत महापुराण

प्रथम स्कन्ध: -  प्रथम अध्याय:


मंगलाचरण

जिससे इस जगत् की सृष्टि, स्थिति और प्रलय होते हैं—क्योंकि वह सभी सद्रूप पदार्थों में अनुगत है और असत् पदार्थों से पृथक् है; जड नहीं, चेतन है; परतन्त्र नहीं, स्वयं प्रकाश है; जो ब्रम्हा अथवा हिरण्यगर्भ नहीं, प्रत्युत उन्हें अपने संकल्प से ही जिसने उस वेद ज्ञान का दान दिया है; जिसके सम्बन्ध में बड़े-बड़े विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं; जैसे तेजोमय सूर्य रश्मियों में जल का, जल में स्थल का और स्थल में जल का भ्रम होता है, वैसे ही जिसमें यह त्रिगुणमयी जाग्रत्-स्वप्न-सुषुप्तिरूपा सृष्टि मिथ्या होने पर भी अधिष्ठान-सत्ता से सत्यवत् प्रतीत हो रही है, उस अपनी स्वयं प्रकाश ज्योति से सर्वदा और सर्वथा माया और माया कार्य से पूर्णतः मुक्त रहने वाले परम सत्य रूप परमात्मा का हम ध्यान करते हैं । महामुनि व्यास देव के द्वारा निर्मित इस श्रीमद भागवत महापुराण में मोक्ष पर्यन्त फल की कामना से रहित परम धर्म का निरूपण हुआ है। इसमें शुद्धान्तःकरण सत्पुरुषों के जानने योग्य उस वास्तविक वस्तु परमात्मा का निरूपण हुआ है, जो तीनों तापों का जड़ से नाश करने वाली और परम कल्याण देने वाली है। अब और किसी साधन या शास्त्र से क्या प्रयोजन। जिस समय भी सुकृति पुरुष इसके श्रवण की इच्छा करते हैं, ईश्वर उसी समय अविलम्ब उनके ह्रदय में आकर बन्दी बन जाता है । रस के मर्मज्ञ भक्तजन! यह श्रीमद भागवत वेद रूप कल्प वृक्ष का पका हुआ फल है।

श्रीमद भागवत महापुराण महात्म - चतुर्थ अध्याय Shrimad Bhagwat Mahapuran Mahatam- Chapter - 4

श्रीमद भागवत महात्म - चतुर्थ अध्याय


चतुर्थ अध्याय में "श्रीमद भागवत का स्वरूप, प्रमाण, श्रोता-वक्ता के लक्षण, श्रवण विधि और माहात्म्य का वर्णन है "


शौनकादि ऋषियों ने कहा ;- सूत जी! आपने हम लोगों को बहुत अच्छी बात बतायी। आपकी आयु बढ़े, आप चिरजीवी हों और चिरकाल तक हमें इसी प्रकार उपदेश करते रहें। आज हम लोगों ने आपके मुख से श्रीमद्भागवत का अपूर्व माहात्म्य सुना है। सूत जी! अब इस समय आप हमें यह बताइये कि श्रीमद्भागवत का स्वरूप क्या है? उसका प्रमाण- उसकी श्लोक संख्या कितनी है? किस विधि से उसका श्रवण करना चाहिये? तथा श्रीमद्भागवत के वक्ता और श्रोता के क्या लक्षण हैं? अभिप्राय यह है कि उसके वक्ता और श्रोता कैसे होने चाहिये।

सूत जी कहते हैं ;- ऋषिगण! श्रीमद्भागवत और श्रीभगवान का स्वरूप सदा एक ही है और वह सच्चिदानन्दमय। भगवान श्रीकृष्ण में जिनकी लगन लगी हैं, उन भावुक भक्तों के हृदय में जो भगवान के माधुर्य भाव को अभिव्यक्त करने वाला, उनके दिव्य माधुर्यरस का आस्वादन कराने वाला सर्वोत्कृष्ट वचन है, उसे श्रीमद्भागवत समझो। जो वाक्य ज्ञान, विज्ञान, भक्ति एवं इनके अंगभूत साधन चतुष्टय को प्रकाशित करने वाला है तथा जो माया का मर्दन करने में समर्थ है, उसे भी तुम श्रीमद्भागवत समझो। श्रीमद्भागवत अनन्त, अक्षरस्वरूप है; इसका नियत प्रमाण भला कौन जान सकता है? पूर्वकाल में भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी के प्रति चार श्लोकों में इसका दिग्दर्शन मात्र कराया था।

श्रीमद भागवत महापुराण महात्म - तृतीय अध्याय Shrimad Bhagwat Mahapuran Mahatam - Chapter - 3


 

श्रीमद भागवत महापुराण महात्म - तृतीय  अध्याय

तृतीय अध्याय अध्याय में "श्रीमद्भागवत की परम्परा और उसका माहात्म्य, भागवत श्रवण से श्रोताओं को भगवद्धाम की प्राप्ति" का वर्णन है"

सूत जी कहते हैं ;- उद्धव जी ने वहाँ एकत्र हुए सब लोगों को श्रीकृष्ण कीर्तन में लगा देखकर सभी का सत्कार किया और राजा परीक्षित को हृदय से लगाकर कहा।

उद्धव जी ने कहा ;- राजन्! तुम धन्य हो, एक मात्र श्रीकृष्ण की भक्ति से ही पूर्ण हो! क्योंकि श्रीकृष्ण-संकीर्तन के महोत्सव में तुम्हारा हृदय इस प्रकार निमग्न हो रहा है। बड़े सौभाग्य की बात है कि श्रीकृष्ण की पत्नियों के प्रति तुम्हारी भक्ति और वज्रनाभ पर तुम्हारा प्रेम है। तात! तुम जो कुछ कर रहे हो, सब तुम्हारे अनुरूप ही है। क्यों न हो, श्रीकृष्ण ने ही शरीर और वैभव प्रदान किया है; अतः तुम्हारा उनके प्रपौत्र पर प्रेम होना स्वाभाविक ही है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि समस्त द्वारिकावासियों में ये लोग सबसे बढ़कर धन्य हैं, जिन्हें व्रज में निवास कराने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आज्ञा की थी। श्रीकृष्ण का मनरूपी चन्द्रमा राधा के मुख की प्रभारूप चाँदनी से युक्त हो उनकी लीला भूमि वृन्दावन को अपनी किरणों से सुशोभित करता हुआ यहाँ सदा प्रकाशमान रहता है।

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