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महर्षि पतंजली व्दारा निर्मित योग सूत्र (THE YOG SUTRAS OF MAHARISHI PATANJALI)

महर्षि पतंजली व्दारा निर्मित योग सूत्र



1.1 अथ मोगानसु ास्नभ ्

अब में योग को विस्तार से कहता हूँ.

Now Yoga Is Explained

1.2 मोगश्र्चित्त वश्र्ृत्त ननयोध्

चित्त की वृत्तियों को शांत करना ही योग है.

Yoga Is Ceasing Of Properties Of Being (The "Chitt").

{Yoga Is the Union Surpassing the (Properties of Being)}



1.3 तदा द्रष्ु् स्वरूऩवे स्थानभ ्

तब योगी अपने सच्चे स्वरूप में स्थापित होता है

Then the Seer Exists As Itself


1.4 वश्र्ृत्त सारूप्मलभतयत्र

अन्य समय  वह वृत्तियों से प्रभावित होती है 

The (Properties of Being) Exists At Other Times



1.5 वत्तम् ऩञ्ितय्म् ृ श्र्लरष्ा अश्र्लरष्ा्

वृत्तियाँ अच्छी या बुरी पांच प्रकार की होती है 

The Types of (Properties of Being) Are Five and They Each May Be Good or Bad



1.6 प्रभाण र्वऩममि र्वकल्ऩ ननद्रा स्भतृ म्

जो की निम्न है प्रमाण , विपर्यय, विकल्प , निंद्रा और स्मृति 

They Are Correct Intelligence, Incorrect Intelligence, Imagination, Sleep and Memory


1.7 प्रत्मऺानभाना ु गभा् प्रभाणानन

जब किसी वस्तु प्रत्यक्ष होना, सही अनुमान लगाना और भरोसा होना प्रमाण है 

Correct Intelligence May Be Acquired By Direct Observation, Correct Analysis, Trustworthy Testimony



1.8 र्वऩमिमो लभथ्मा ऻानभ ्तद्रऩू प्रनतस्तभ ्

किसी वस्तु के बारे में जो मिथ्या है , झूठ है, गलत आभास होना की वह सच है विपर्यय है 

Incorrect Intelligence Is Based On False Knowledge and Of Perception Of What Is Not The True Form


1.9 शब्द ऻानानऩु ानत वस्तशु न्ूमो् र्वकल्ऩ्

जिस ज्ञान के बारे सही गलत की असमंजस हो, तथा किसी वस्तु की कल्पना की जाए वह विकल्प है 

The Knowledge Which Is Followed By Concepts Which Are Devoid Of Reality Is Imagination


1.10 अबाव प्रत्ममारॊफना वश्र्ृत्त ननद्रा

विषयागत बोध का अभाव निंद्रा है 

Sleep Is The Property Which Is Supported By The Absence Of Objectives Awareness Or Perception



1.11 अनबु तू र्वषमा सप्रॊ भोष् स्भनृत्

स्मृति हमारी अनुभूतिय है  जो हमारे अंदर शेष रह जाती है , जिन्हें हम भूल नही पाते 

Memory Is the Retained Impressions Of Experienced Impressions



1.12 अभ्मास वयैाग्मभ्माभ ्तश्र्न्नयोध्

-इन वृत्तियों को अभ्यास और वैराग्य व्दारा नियंत्रित किया जा सकता है 

The Ceasing Of (Properties of Being) Come By Practice and Non Attachment



1.13 तत्र श्र्स्थतौ मत्नो् अभ्मास्

किसी स्थिति के लिए बार बार प्रयत्न करना अभ्यास है 

The Continuous Effort for a State Is Practice







1.14 स् तुदीघकि ार नैयन्तय सत्कायासेर्वतो दृढबलूभ्


मह तबी सपर होता है जफ हभ इसे रम्फे सभम के लरए दृढ़ सॊकल्ऩ तथा सभऩिण के साथ कयते है


The Practice Is Attained On Firm Basis When the It Is Done With Devotion for A Long Time Continuously








1.15 द्रष्ानस्रु र्वक र्वषम र्वतषृणस्म वशीकाय सऻॊ ा वयैाग्मभ ्


ऩयभफोध होना तथा र्वषमों भें अनासश्र्लत होना वैयाग्म कहराता है


The Non Attachment Is State Of Supreme Awareness And Dispassion From Things Perceived














1.16 तत्ऩयॊ ऩरुुष ख्मातगे णुि वत्रै ष्मभ ्


ऩयभ अवस्था वह होती है श्र्जसभे हभ प्रकृनत के गणु ों से प्रबार्वत नही होते उनसे आसलत नही होते है


That Highest State Of Non Attachment Occurs When There Is Freedom From Influence Of Material Nature


{Practice And Non Attachment Are Like Movement And Balance Of A Running Bicycle


To Keep Running You Must Have To Keep Balance


And To Make Balance You Must Have To Running}














1.17 र्वतकि र्विाय आनन्दाश्र्स्भता रूऩानगु भात सॊप्रऻात्


श्र्जस ऩहरी श्र्स्थनत भे हभ अऩने ऊऩय र्विाय कयते है, तकि र्वतकि कयते है


तथा खदु ऩय ध्मान केश्र्न्द्रत कयते है औय आनॊददत यहते है उसे सम्प्रऻात कहते है


The First State Is Samprajnata (Samadhi) Which Is Associated With Gross Reasoning, Subtle


Thoughts, Bliss And Focus On Self Consciousness.














1.18 र्वयाभ प्रत्ममा अभ्मास ऩवू ्ि सस्ॊ काय शषे ो अन्म्


अभ्मास द्वाया इससे आगे की स्थनत भें हभ ऩयूी तयह से फिी हुइ वासनाओ व र्वषमों से बी अनासलत हो जाते है


औय हभे स्वमॊ का फोध बी नही यहता


The Other State Is In Which By Practice There Is Ceasing Of Previous Remaining Subtle Impressions


And Objective Awareness Or Perception














1.19 बव प्रत्ममो र्वदेह प्रकृनतरमनाभ


जो ऩयूी तयह से प्रकृनत भें रम हो गमे हैउनके बावो भें कुछ सॊस्कायो का शेष होना उनके फाकी अश्र्स्तत्व


का कायण होता है


Of Those Which Are Diffused In Subtle Material Nature Or Higher States The Cause Is Their


Psychology Has Impressions














1.20 श्रद्धा वीमि स्भनृत सभाधध प्रऻा ऩवूकि ् इतयेषाभ ्


अन्म को श्रद्धा, वीमि, स्भनृत, सभाधध औय ऻान के द्वाया ही इन अवस्थाओ का आबास होता है


For Others Trust, Will, Intentful Remembrance, Deep Meditation, Wisdom Are The Reason For Being


Drawn Into These States














1.21 तीव्र सॊवेगानाभासन्न्


जो ऩणू ि सभऩणि के साथ अभ्मास कयते हैवे फहुत जल्द ही सपर होते है


Those Who Practice Very Intensely This Is Achieved Very Soon














1.22 भदृ ुभध्माधधभात्र त्वाततो अर्ऩ र्वशेष्


उनके अभ्मास भें सभऩणि को देखकय उन्हें भदृ ु, भध्मभ आदी श्रेणणमों भें कहा जाता है


Mild, Medium, Intense Are Also Some Distinctions According To Way Of Practice














1.23 ईश्वयप्रणणधान व


ऩयभात्भा को ऩणू ि सभऩणि के द्वाया बी हभ उसे ऩा सकते है


Or It Can Be Achieved By Surrendering To Supreme Lord














1.24 लरेशा कभाि र्वऩाकाशमऩै याभषृ्् ऩरुुषर्वशेष ईश्वय


ऩयभात्भा ऩयभतत्व कबी सखु द्ुख कभो औय र्वप्ऩनतमो से प्रबार्वत नही होता


The Supreme Lord Is A Particular Consciousness Who Is Not Effected By Troubles, Actions, Fruits


Of The Actions Cause By Latent Impressions








1.25 तत्र ननयनतशमॊ सवऻि फीजभ ्


उससे ही ऻान की उत्ऩनत है


There, In Him Found The Unsurpassed Origin Of All Knowledge














1.26 स एष् ऩवू ेषाभर्ऩ गरुु् कारेनानवच्छेदात


वह कार से बी प्रबार्वत नही होता औय प्रािीन गरुुओ का बी गरुु है


He Is Unconditioned By Time And The Master Of Even The Very Ancient Teachers














1.27 तस्म वािक् प्रणव्


उसका सफॊ ोधन हभ प्रणव्“ओभ” अऺय से कयते है


Of Him, The Sacred Syllabe "Pranav" (Aum) Is The Designation














1.28 त्जजऩस्तद्थ बावनभ ्


इस धवनी का अथि सभझने के लरए व सभझकय इसका उच्िायण फाय फाय तथा ननषहा बाव से ककमा जाता है


The Sound Is Remembered Constantly With Deep Feelings For The Meaning Of What It Represents








1.29 तत् प्रत्मक् िेतनाधधगभ् अर्ऩ अन्तयामाबावश ि


इससे ऩयम्फोध तथा फाधाओ का हयण होता है


From That Comes the Awareness Of Self And Removal Of Obstacles








1.30 व्माधध सत्मान सॊशम प्रभाद आरस्म अर्वयनत भ्राश्र्न्त दशिन अरब्ध


बलुभकात्वा अनवश्र्स्थतत्वानन धित्त र्वऺेऩस्ते अन्तयाम्


योग, आरस्म ,सॊशम, लभथ्मा , भ्राश्र्न्त होना , की गमी प्रगनत का ऩणू ि राब न होना मे सफ फाधाए है


The Obstacles Are Disease, Idleness, Doubt, Laziness, Inattentiveness, False Views, Not Being Able To


Maintain The Progress Attained, Instability And Distraction Of Mind














1.31 दखु दौभनि स्म अङ्ग-ॊ एजमत्वा श्वास प्रश्वास् र्वऺऩे सहबवु ्


इनसे भानलसक ऩीड़ा व शायीरयक ऩीड़ा ,तनाव ,अधीय होना ,अननमलभत श्वास आदद ऩयेशाननमा होती है


These Are Accompanied By Others Which Are Mental And Physical Pain, Depression, Nervousness


And Irregular Breathing














1.32 तत्प्रनतसेधा अथं एक तत्त्व अभ्मास्


इनको योकने के लरए एकें दद्रत होना जरूयी है


To Prevent These One Should Practice One pointedness














1.33 भत्रै ी करुणा भदुदतोऩऺे णाभ ्सखु दखु ऩ्ुम अऩ्ुम र्वषमानभ ्बावनात्धित्त प्रसादनभ ्


भैत्री, करुणा, दमाबाव, स्वीकाय कयना, सखु द्ुख भें अनासलत होना इन सफसे धित्त शाॊत होता है


The Mind Is Purified By Cultivating Feeling Of Friendliness, Compassion, Goodwill, Acceptance, Joy


And Indifference Towards Sorrow And Non-Virtue














1.34 प्रच्छर्द्िन र्वधायनाभ्माॊ व प्राणास्म


श्वास को ननमलभत व भॊद कयके बी भन शाॊत होता है


The Mind Is Also Calmed By Gentle Breath Or Regulating The Breath














1.35 र्वषमवती वा प्रवश्र्ृत्त उत्ऩन्न भनस् श्र्स्थनत ननफन्धनी


मा कपय ककसी वस्तुऩय केश्र्न्द्रत कयके श्र्जससे धित्त को ऩणू ि शाॊती का फोद्ध हो


Or It Can Be Achieved By Concentration On Sensory Impressions In A Way That They Lead To


Higher, Subtler Sense Perception














1.36 र्वशोका व जमोनतषभती


मा कपय आत्भप्रकाश ऩय के श्र्न्द्रत होकय


Or The Mind Is Purified By Concentration On Sorrow less And Spiritually Luminous State














1.37 र्वतयाग र्वषमॊ वा धित्तभ ्


मा कपय याग द्वेष व इच्छाओ से अनासलत होकय


Or Contemplating On Having A Mind Devoid Of Desires














1.38 स्वप्न ननद्रा ऻानारॊबनॊ वा


मा कपय ननद्रा औय स्वप्न के स्वबाव को सभझकय


Or By Concentration On Nature Of Dreams And Sleep














1.39 मथालबभत ध्मानात वा


मा ककसी ननषहावान वस्तुऩय ऩणू ि ननषहाबाव से बी धित्त शाॊत होता है


Or It Can Be Achieved By Effortless Linkage To What Is Dearly Desired














1.40 ऩयभाणुऩयभभहत्त्वान्तोअस्म वशीकाय्


धित्त के शाॊत होने से अणुसे रेकय सम्ऩणू ि ब्रह्भा्ड तक की सभझ उत्ऩन्न होती है


The Mastery Over Mind Results In Control Of His Relationship From Atom To Cosmos








1.41 क्षऺन्न वत्ृते अलबजातस्मव भणे् ग्रदहत्री ग्रहण ग्र े ह्मेषुतत्स्थ ततन्जनता सभाऩश्र्त्त्


जफ वश्र्ृत्तमों शाॊत हो जाती हैऔय धित्त एक ऩायदशकि भणण की तयह हो जाता है श्र्जसके आय ऩाय


सब दीखता हो तफ उस अवस्था भें वस्तुश्र्जसका अवरोकन ककमा जा यहा है ,उसका लमा अवरोकन ककमा जा यहा है


तथा अवरोकन कौन कय यहा है आदद र्वबश्र्लतमो का आऩस भें र्वरम हो जाता है औय वे एकरूऩ हो जाती है


When The Mind Operations Are Ceased It Becomes Like A Transparent Jewel And Thus There Is


Fusion Of What Is The Object, What Is Being Observed And Who Is The Observer Is Called Samapattih














1.42 तत्र शब्दाथि ऻान र्वकल्ऩे् सॊकीणि सर्वतकाि सभाऩश्र्त्त्


तफ शब्द ,उसका अथि तथा शब्द के द्वाया ऻान आदद उस सम्फन्ध भें हय ऩहरूहभाये धित्त भें सॊमोश्र्जत हो जाते है,


के श्र्न्द्रत हो जाते हैइस अवस्था को सर्वतकाि सभाऩश्र्त्त् कहते है


The Savitarka (With Gross Objects) Samapattih Is That In Which The Word, Its Meaning And The


Knowledge Associated With The Word Are Blend Together And Alternate Within Mind








1.43 स्भनृत ऩरयशद्धु ौ स्वरुऩशन्ुमेव अथिभात्र ननबािसा ननर्वितकाि


श्र्जस अवस्था भें हभाया धित्त शद्धु हो जाता हैऔय उसको खुद के स्वरूऩ का बी फोध नही यहता उस अवस्था भें


श्र्जस वस्तुऩय वह अवरोककत हैवह प्रकाशभम व होती है औय इस अवस्था को ननर्वितकाि सभाऩश्र्त्त् कहते है


The Nivitarka (Without Gross Objects) Samapattih Is That In Which When The Memory And Mind Is


Purified Then The Mind Appears To Be Devoid Of Its Own Nature And Only Object On Which It Is


Contemplating Appears To Shine Forward














1.44 एतमे एव सर्विाया ननर्विि ाया ि सक्ष्ूभ र्वषमा व्माख्माता


इसी प्रकाय सर्विाया औय ननर्विि ाया को कहा गमा हैतथा सक्ष्ुभ र्वषमों को बी कहा गमा है


In The Same Way The Linkage Of Savichara (With Subtle Objects) And Nirvichara (Without Subtle


Objects) And The Linkage Of Subtle Objects Is Also Explained














1.45 सक्ष्ूभ र्वषमत्वॊ ि आलरङ्ग ऩमवि सानाभ ्


स्थूर र्वषमों के फाये भें जफ सक्ष्ूभदृश्र्ष् का बी अॊत होता है, जफ धित्त उस ऩयभ अवस्था ऩय के श्र्न्द्रत होता है


The Insight Into The Subtle Nature Of Gross Objects Terminates When There Is A Linkage With The


Higher Concentration Force Which Has No Characteristics








1.46 ता एव सफीज् सभाधध्


जो सब मे कही गमी है इन्हें सत्रफज् सभाधी कहते है


They Previously Described Are Called Sabeeja (Still Containing The Seed Of Separateness) Samadhi








1.47 ननर्वििाया वैशायद्मे अध्मात्भ प्रसाद्


जफ धित्त की वश्र्ृत्तमा ऩणू ि रूऩ से शाॊत हो जाती हैतफ ऩयभऻान की अवस्था अवतरयत होती है धित्त शाॊत व


प्रकाशभम हो जाता है


When Pure Perception Without The Judicial Action Of Mind Is Reached There Flows The Peace Of Inner self








1.48 रयतॊबया तत्र प्रऻा


जो इस अवस्था भें ऻान का अनबु व होता हैवही सच्िा तथा शद्धु होता है


The Experiential Knowledge Gained In That State Is The Essential Wisdom And Is Filled With Truth














1.49 श्रुत अनभु ान प्रजनाभ्माभन्मर्वषम र्वशेषाथत्ि वात्


मह ऻान उन सब से लबन्न होता हैंजो की प्रभाण मा अनभु ान द्वाया प्राप्त होता हैलमोंकक मह वस्तअधीन नहीॊ ु


होता फश्र्ल्क स्वमभ प्रकाशभम होता है


It Is Different From The Two Methods What Is Heard And What Is Reasoned Out Because That Is


Limited To Particular Aspects Of Object Rather Than Other Concepts














1.50 तजज् सॊस्काय् अन्म सॊस्काय प्रनतफश्र्न्ध


मह सस्ॊ काय जों की शद्धु होता हैशषे अन्म सस्ॊ कायों का ननवायण कयता है


That Kind of Impression Which Is Filled With Truth Acts As The Preventer Of Other Latent Impressions














1.51 तस्मार्ऩ ननयोधे सवि ननयोधात ननफीज् सभाधध्


जफ इस सॊस्काय का बी अन्म सॊस्कायो के साथ ननवायण हो जाता है इसे ननफीज् सभाधी कहते है


When Even These Impressions Filled With Truth Recede Along With Other Impressions This Is Called Nirbeeja


Samadhi






साधना ऩद SADHNA PADA














2.1 तऩ् स्वाध्माम ईश्वयप्रणणधानानन किमामोग्


तऩ, स्वाध्माम औय ईश्वयप्रणणधाना इनको हभ किमामोग भें कहते है


Yoga in the form of action (kriya yoga) has three parts: 1) training and purifying the senses (tapas),


2) self-study in the context of teachings (svadhyaya), and 3)DEVOTION TO SUPREME LORD








2.2 सभाधध बावनाथ्ि लरेशा तनुकयणाथि ि


इनका अभ्मास सभाधध ऩाने तथा द्ुख से भश्र्ुलत के लरए ककमा जाता है


That Yoga of action (kriya yoga) is practiced to bring about Samadhi and to minimize the SORROWS(KLESHAS)














2.3 अर्वद्मा अश्र्स्भता याग द्वेषा अलबननवेषा ऩञ्ि लरेशा


अर्वद्मा, अहॊकाय, याग, द्वेष औय अलबननवेष इनको ऩाॊि लरेश कहा गमा है


There are five kinds of sorrows (kleshas): 1) forgetting, or ignorance about the true nature of things (avidya),


2) I-ness, individuality, or egoism (asmita), 3)attachment or addiction to mental impressions or objects (raga),


4) aversion to thought patterns or objects (dvesha), and 5) love of these as being life itself, as well


as fear of their loss as being death














2.4 अर्वद्मा ऺत्रे भत्तयेषाॊ ु प्रसप्ुत तनुर्वश्र्च्छन्नोदायाणभ ्


अर्वद्मा, औय सबी लरेशो के होने का कायण है उनकी हय अवस्था भें िाहे वह प्रधान अवस्था हो मा ननम्न हो


Spiritual ignorance is the existential environment for the other kleshas, in their dormant, reduced,


periodic or expanded stages.














2.5 अश्र्न्तमाशधुि द्ुखानात्भसुननत्म शधुि सखु ात्भ खमनत् अर्वद्मा


जफ लभथ्मा सॊसाय को ही सि तथा आनॊदभम औय ऩयभसत्म सभझा जाए तथा उसके सही होने का आबास हो उसे


अर्वद्मा कहते है


Spiritual ignorance is exhibited when what is temporary, impure, distressful and mundane,


is identified as being eternal, pure, joyful and spiritual respectively














2.6 दृशम दशिन शलत्मो् एकभतेवा अश्र्स्भत


अहॊकाय जो अर्वद्मा से उत्ऩन्न है, होता हैजफ फर्ुद्ध को ही स्वमॊ का अश्र्स्तत्व भान लरमा जाए औय उसे ही ऩयभ


उत्ऩश्र्त्त सभझा जाए


The coloring (klesha) of I-ness or egoism (asmita), which arises from the ignorance, occurs due to the mistake


of taking the intellect (buddhi, which knows, decides, judges, and discriminates) to itself be pure consciousness








2.7 सखु ानशु ानम याग्


सखु ों भें आसश्र्लत, लसपि खशु ी िाहने की इच्छा को याग कहते है


Attachment (raga) is a separate modification of mind, which follows the rising of the memory of pleasure














2.8 दखु ानशु ानम द्वेष्


दखु ो भें घणृ ा, उनको धुतकायना सखु की इच्छा के लरए द्वेष कहराता है


Aversion (dvesha) is a modification that results from misery(pain) associated with memory








2.9 स्वयसवादह र्वदषुोअर्ऩ तथा रुध् अलबननवेश्


जो की त्रफर्द्धभान हैउनभे बी एक सदा यहने वारा भत्ृमुका डय हैअथाित स्वमॊ का अश्र्स्तत्व खोने का डय हैजो की


इस लभथ्मा ससॊ ाय ऩय ऩणू ि केश्र्न्द्रत होने से हैउसे हभ अलबननवेष कहते है


Even for those people who are wise, there is an ever-flowing, firmly established fear of death and of non-existence


And Which is due to strong focus on mundane existence














2.10 ते प्रनतऩसवहेमा् सक्ष्ूभ्


इन सक्ष्ुभ वेगो के कायणों का ननदान कयना िादहए इनके अश्र्स्तत्व को सभझकय


These subtle motivations are to be abandoned by reverting their expressions backwards














2.11 ध्मानहेमास्तदवत्ृतम्


औय ध्मान के श्र्न्द्रत कयके इनका ननदान कयना िादहए


These should be ceased with the help of concentration.














2.12 लरेशा भरू ् कभािशम दृष् अदृष् जन्भवेदननम्


अच्छे फयुे कभो का बडॊ ाय ही इन सखु दखु ो का कायण होता है


The reservoir of actions is the origin of kleshas and effect in the life.














2.13 सनत भरु े तत्र्वऩाक् जानत आमुबोग्


मही जन्भ, आमुऔय हभाये अनबु वों का कायण होते है


As long as those (kleshas) remains at the root, three consequences are


produced: 1) birth, 2) span of life, and 3) experiences in that life.








2.14 ते ह्रादऩरयताऩ परा् ऩ्ुम अऩ्ुम हेतवु ात्


इनके अच्छे मा फयुे होने के कायण ही सखु औय द्ुख का अनबु व होता है


Because of having the nature of merits or demerits (virtue or vice), these


may be experienced as either pleasure or pain.














2.15 ऩरयणाभ तऩ सस्ॊ काय द्ुख्ै गणु वश्र्ृत्त् र्वयोधत ि दखु भेव सवं र्ववेककन्


फर्ुद्धभान व्मश्र्लत को इन सब भें अनासलत होना िादहए लमोंकक से सफ औय ऩरयणाभो का फनते है औय इनसे


अन्म सॊस्काय बी उत्ऩन्न होते है


A wise, person sees all worldly experiences as painful, because of reasoning that all these experiences lead


to more consequences, anxiety, and deep habits (samskaras), as well as clashing aspects.








2.16 हेमॊ दखु भनागतभ ्


इस तयह से इनका ननदान कयके इनसे होने वारे दखु ो से फिना िादहए


Sorrow which is not come yet is to be avoided.








2.17 द्रष्रय दृषममो् समॊ ोग् हेम हेत्ु


दृश्र्ष् औय दृश्मों का सॊमोग ही महा हेतुकहा गमा है


The uniting of the seer (the subject) with the seen (the object) is the cause or connection to be avoided.








2.18 प्रकाश किमाश्र्स्थनतलशरॊ बतू श्र्ेन्द्रमात्भकभ बोगाऩवगाथं दृश्मॊ


इस ससॊ ाय को अनबु व कयने तथा इसके फधॊ न से भलुत होने के लरए ही इन वस्तओु का अश्र्स्तत्व होता है,


औय इन वस्तओु की प्रिनत के अनसु ाय ही मे ककमािशीर होती हैतथा इनकी प्रकृनत के अनसु ाय ही इश्र्न्द्रमा इन्हें


ग्रहण कयती है


The objects (or knowable) are by their nature have illumination, activity, inertia or stasis;


they consist of the elements and the powers of the senses, and exist for the purpose of


experiencing the world and for liberation or enlightenment.














2.19 र्वशेषार्वशेष लरङ्गभात्रालरन्गानन गणु ऩविणण


र्वलशष् औय व्माऩक तथा ऩथृ क औय अऩथृ क इस प्रकाय गणु ों को कहा गमा है


There are four states of the elements (gunas) which are the specific, the universal, the differentiated and


the undifferentiated.














2.20 द्रष्ा दृश्र्ष्भातय् शद्धु ् अर्ऩ प्रत्मम अनऩु षम्


एक मोगी की दृश्र्ष् ननभरि होती हैशद्धु होती हैमद्मर्ऩ वह देखता हैअऩने ऻान के द्वाया


The Seer is pure vision. Though pure, he looks out through the vesture of the mind.














2.21 तदथि एव दृश्मस्मात्भा


वस्तओु का अश्र्स्तत्व उनका अवरोकन होने से ही है


The very essence of things seen is, that they exist for the Seer.














2.22 कृताथं प्रनत नस््भ ्अर्ऩ अनस््भ ्तदन्म साधायनत्वात्


वस्तओु की प्रकृनत मोगी को प्रबार्वत नही कयती जफकक अन्म ऩय इनका साधायणत् प्रबाव होता है


The essence or nature of the knowable objects does not effect the one whose purpose is fulfilled but


it has a common effect on the others.














2.23 स्व स्वालभ सलत्मो् स्वरुऩोऩरश्र्ब्ध हेत्ु समॊ ोग्


अवरोककत वस्तुऔय उसको अवरोककत कयने वारे के इस समॊ ोग का कायण है, अवरोककत कयने वारे का अऩने


स्वरूऩ का लभथ्मा ऻान


The true purpose of the coming together(alliance) of the seer and seen is gaining by the seer the awareness


of his true nature.








2.24 तस्म हेत्ु अर्वद्मा


श्र्जसके होने का कायण है अर्वद्मा


Its cause is the lack of awareness of his Real nature(avidya).














2.25 तदबावात्समॊ ोगाबावो हानॊ तदृश्े कैवल्मभ ्


अर्वद्मा के आबाव से इस समॊ ोग का आबाव हो जाता हैऔय तफ भश्र्ुलत का फोध होता है


By causing a lack of avidya, or ignorance there is then an absence of the alliance,


and this leads to a freedom known as a state of liberation














2.26 र्ववेक ख्मानत् अर्वप्रव हनोऩाम्


रगाताय अभ्मास कयना इस ऩयम्फोध का, अर्वद्मा के अबाव का कायण फनता है


The uninterrupted practice of the awareness(continuous discriminative insight) of the Real is the


means of dispersion (of Avidya).














2.27 तस्म सप्तधा प्रान्तबलूभ् प्रऻा


कभिश् इसभें सात अड़ॊग इसके घ्क होते है


His illuminations is sevenfold, rising In successive seven stages.








2.28 मोग अङ्ग अनस्ुहानादशर्ुद्ध ऺमे ऻान दीश्र्प्त् अ र्ववेक ख्माते्


इनके अभ्मास से लभथ्मबाव दयू होता हैआत्म्प्रकाश्भम हो जाता हैतथ सत्म फोद्ध होता है


From the practice of the component exercises of Yoga, on the destruction of


impurity, arises spiritual illumination which develops into awareness of Reality.














2.29 मभ ननमभ आसन प्राणामाभ प्रत्माहाय धायणा ध्मान सभाधध अष्ौ अङ्गानन


मभ ननमभ आसन प्राणामाभ प्रत्माहाय धायणा ध्मान औय सभाधध मे मोग के आह अड़ॊग है


The eight means of Yoga are: the Commandments, the Rules, right Poise, right Control of the life-force,


Withdrawal, Attention, Meditation, Contemplation.








2.30 अदहॊसा सत्म अस्तेम ब्रह्भिमि अऩरयग्रह मभ्


अदहॊसा सत्म अस्तेम ब्रह्भिमि औय अऩरयग्रह मभ कहराते है


Non-injury or non-harming (ahimsa), truthfulness (satya), abstention from stealing (asteya), walking in


awareness of the highest reality (brahmacharya), and non-possessiveness or non-grasping with the senses


(aparigraha) are the five yamas, or codes of self-regulation or restraint in yoga.














2.31 जानत देश कार सभम अनवश्र्च्छन्ना् सवबि ौभा भहाव्रतभ ्


मे ककसी जाती कार सभम से फाधधत नही है औय सविव्माऩक है औय इन्हें भहाव्रत कहा गमा है


The restraints, not limited to any race, place, time or occasion, universal, are the great obligation.














2.32 शौि सॊतोष तऩ स्वाध्माम ईश्वयप्राननधाना ननमभ्


शौि सॊतोष तऩ स्वाध्माम औय ईश्वयप्राननधाना इनको ननमभ कहा गमा है


Purification, contentment, austerity and profound religious meditation on the Supreme Lord are the rules.














2.33 र्वतकि फाधने प्रनतऩऺ बावनभ ्


सशॊ म की श्र्स्थनत भें इनके प्रनतभखु सोिना िादहए


In the case of the annoyance produced by doubts, one should conceive of what is opposite.








2.34 र्वतकि दहसॊ ादम् कृतकारयतानभु ोददत रोब िोध भोह ऩवूकि ा भदृ ु


भध्माधधभात्रा दखु ाऻान अनन्त पर इनत प्रनतऩऺ बावनभ ्


सॊशम जो उत्ऩन्न कयता है दहॊसा तथा अन्म ऐसे कभि, जो की दसु यो को नकु सान ऩहुिाते है ,औय जो रारि औय


िोध के कायण होते है, वे िाहे छो्े हो मा फड़े अहॊकाय तथा लभथ्मबाव को जन्भ देते है


Doubts which produce violence and related actions, which are performed, caused to be done or endorsed,


and which are caused by greed, anger and delusion, even if minor, mediocre or substantial, cause endless distress


and spiritual ignorance as the results. Therefore, one should consider the opposite features.














2.35 अदहॊसा प्रनतषहामभ ्तत्सॊननधौ वैयत्माग्


अदहॊसा भें दृढ़ सॊकल्ऩ से अन्म रोगो का मोगी से वैयबाव नहीॊ होता


As a Yogi becomes firmly grounded in non-injury (ahimsa), other people who


come near will naturally lose any feelings of hostility.














2.36 सत्म प्रनतस्हामभ ्किमा पराश्रमत्वभ ्


सत्म भें दृढ़ सॊकल्ऩ से ककमािपर इच्छानसु ाय हो जाता है


As truthfulness (satya) is achieved, the fruits of actions naturally result according to the will of the Yogi.














2.37 अस्तेम प्रनतषहामभ ्सवि यत्न उऩस्थानभ ्


अस्तेम भें दृढ़ सॊकल्ऩ से सफ यत्न उऩश्र्स्थत होते है


When non-stealing (asteya) is established, all jewels, or treasures present


themselves, or are available to the Yogi














2.38 ब्रहॊिामि प्रनतषहामभ ्वीमि राब्


ब्रह्भिमि भें स्थार्ऩत होने से वीमि राब होता है


When walking in the awareness of the highest reality (brahmacharya) is firmly


established, then a great strength, capacity, or vitality (virya) is acquired














2.39 अऩरयग्रह स्थैमेजन्भ कथान्त सफॊ ोध्


अऩरयग्रह भें स्थार्ऩत होने से बतु बर्वषम का फोध होता है


When one is steadfast in non-possessiveness or non-grasping with the senses


(aparigraha), there arises knowledge of the why and wherefore of past and future.














2.40 सौित स्वाङ्गजुगप्ुसा ऩयैयससगि्


शौि से भन औय शयीय की शर्ुद्ध होती हैऔय ऩयशयीय भें अरुधि उत्ऩन्न होती है


Through cleanliness and purity of body and mind (shaucha), one develops an attitude of distancing or disinterest


towards one's own body, and becomes disinclined towards contacting the bodies of others.














2.41 सत्त्व शर्द्ध सौभनस्म ु एकाग्र इश्र्न्द्रमजम आत्भद्रषण मोग्मत्वानन ि


भन की शर्ुद्ध सेआनदॊ ,एकाग्रता ,इश्र्न्द्रम ननग्रह औय आत्भदशनि आदद प्राप्त होते है


From mental purity (arises) purity of Sattva, cheerful-mindedness, onepointedness, control of the senses and fitness for the vision of the Self.














2.42 सॊतोषानत्ुतभ् सखु राब्


सतॊ ोष से उत्तभ सखु तथा आनदॊ लभरता है


From an attitude of contentment (santosha), unexcelled happiness, mental comfort, joy, and satisfaction is obtained.














2.43 कामेश्र्न्द्रम लसर्द्धयशदुर्द्ऺमात तऩस्


तऩ से कामा औय इश्र्न्द्रमों की शर्ुद्ध तथा अशर्ुद्धमो का ननवायण होता है


Austerity, resulting in the elimination of impurity produces perfection of the body and sensual energy.














2.44 स्वध्मामत इष्देवता सॊप्रमोग्


स्वाध्माम से इष्देवता प्रसन्न होते है औय ऻान की प्राश्र्प्त होती है


From self-study and reflection on sacred words (svadhyaya), one attains contact,


communion, or concert with that underlying natural reality or force








2.45 सभाधध लसदर्द्् इश्वयप्रननधानात्


इश्वयप्रननधान से सभाधधस्थ हो जाते है


From an attitude of surrender to god (ishvarapranidhana), the state of


perfected concentration (Samadhi) is attained.














2.46 श्र्स्थय सखु भ ्आसनभ ्


श्र्जससे श्र्स्थयता लभरे तथा श्र्जसभे व्माधध उत्ऩन्न न हो वह आसन कहराता है


The posture (asana) for Yoga meditation should be steady, stable, and motionless, as well as comfortable














2.47 प्रमत्न शैधथल्मानन्त सभऩश्र्त्तभ्माभ ्


अभ्मास के द्वाया आसन भें श्र्स्थयता हो जाती है श्र्जससे भन एकाग्र हो जाता है


The means of perfecting the posture is that of relaxing or loosening of effort, and


allowing attention to merge with endlessness, or the infinite.














2.48 ततो द्वन्द्वानलबघात्


आसन भें लसर्द्ध से र्वलबन्न द्वन्दवो से भश्र्ुलत लभरती है


From the attainment of that perfected posture, there arises an unassailable, unimpeded freedom from suffering


due to the pairs of opposites (such as heat and cold, good and bad, or pain and pleasure).














2.49 तश्र्स्भन्सनत श्वास प्रश्वसमो् गनत र्वच्छेद् प्राणामाभ्


श्र्जसके फाद श्वास औय प्रश्वास की गनत को ननमलभत भें ककमा जाता है श्र्जसे प्राणामाभ कहते है


When this is gained, there follows the right guidance of the


life-currents, the control of the incoming and outgoing breath.








2.50 फाह्म अभ्मन्तया स्तॊबवश्र्ृत्त् देश कार सॊख्मालब् ऩरयदद्रष्ो दीघि सक्ष्ूभ्


फाह्म अबमा ् न्तय औय स्तबॊ वश्र्ृत्त मह तीन प्रकाय का है श्र्जनको सभम स्थान व्जरवामुके अनसु ाय दीघि मा सक्ष्ुभ


अथाित ननमलभत ककमा जाता है


That pranayama has three aspects which are external(exhalation), internal(inhalation), and the third, which is the


absence of both during the transition between them, and is known as fixedness, retention, or suspension.


These are regulated by place, time, and number, with breath becoming slow and subtle.














2.51 फाह्म अभ्मन्तया र्वषमाऺेर्ऩ ितथु ्ि


फाह्म अभ्मन्तय को िोथा कहा गमा जो फाकक तीनो से प्रधान है


The fourth pranayama is that continuous prana which surpasses, is beyond, or


behind those others that operate in the exterior and interior realms or fields.














2.52 तत् ऺीमते प्रकाशावयणभ ्


इससे कभि तथा कभिपरो का ऺम होता है श्र्जनके द्वाया आत्भप्रकाश ढका हुआ होता है


Through that pranayama the veil of karmasheya (2.12) that covers the inner


illumination or light is thinned, diminishes and vanishes.














2.53 धायणासुि मोग्मता भनस्


इस मोगाभ्मास से भन की एकाग्रता धायण कहते है


Through these practices and processes of pranayama, the mind acquires capability for true concentration (dharana)














2.54 स्वर्वषमा सॊप्रमोगे धित्तस्म सवरूऩानकु ाय इवेश्र्न्द्रमाणाॊ प्रत्माहाय्


इश्र्न्द्रमों ऩय ननमॊत्रण औय उनको फाह्म र्वषमों से ह्ाना प्रत्माहाय कहराता है


Pratyahara or abstraction is, as it were, the imitation by the senses of the mind


by withdrawing themselves from their objects.














2.55 तत् ऩयभ वस्मतैश्र्न्द्रमाणाभ ्


इससे ऩयभ ननमॊत्रण का बाव उत्ऩन्न होता हैव इश्र्न्द्रमों का ननग्रह होता है


Through that accomplishment comes degree of higher control and the mastery over sense organs


र्वबूनत ऩद VIBHUTI PADA














3.1 देश् फन्ध् धित्तस्म धायणा


धित्त को ककसी एक वस्तुके प्रनत केश्र्न्द्रत कयना धायना है


Concentration (dharana) is the process of holding or fixing the attention of mind onto one object or place








3.2 तत्र प्रत्मम एकतनता ध्मानभ ्


उस वस्तुके प्रनत सतत एकाधग्रत यहना ध्मान है


The repeated continuation, or uninterrupted stream of that one point of focus is


called absorption in meditation (dhyana)

3.3 तदेवा अथि भात्र ननबसि ॊ स्वरुऩ शन्ूमलभव सभाधध


उस वस्तुके प्रनत इस तयह से ननश्र्षहत हो जाना की खुद का बी आबाव हो जाए इस गहन एकाग्रता को सभाधध


कहते है


When only the essence of that object, place, or point shines forth in the mind, as if devoid even of its own form, that


state of deep absorption is called deep concentration or samadhi.



3.4 त्रमभेकत्र सॊमभ्


इन तीनो धायणा ध्मान सभाधध के एक साथ होने को सॊमभ कहा जाता है


The three processes of dharana, dhyana, and samadhi, when taken together on


the same object, place or point is called samyama.









3.5 तजजामत्प्रऻा रोक्


इस सॊमभ से स्वमॊ प्रकाशभम हो जाता है तथा ऩयभ सत्म का फोध होता है


Through the mastery of that three-part process of samyama, the light of knowledge, transcendental insight, or


higher consciousness (prajna) dawns, illumines, flashes, or is visible.














3.6 तस्म बलूभसुर्वननमोग्


इस अभ्मास भें िभफद्ध कई अवस्थाम होती है


The practice of this complete restraint occurs in stages.














3.7 त्रमभ ्अन्तयङ्गॊ ऩवू ेभ्म्


मे तीनो अड़गॊ र्ऩछरे फताए गए ऩाॊि अड़गॊ ो से जमादा सक्ष्ुभ है


These three practices of concentration (dharana), meditation (dhyana), and


samadhi are more intimate or internal than the previous five practices.














3.8 तदर्ऩ फदहयङ्गॊ ननफीजस्म


कपय बी मे ननफीज सभाधी की अवस्था से सक्ष्ुभ नही है, वह ऩयभ अवस्था है


However, these three practices are external, and not intimate compared to nirbija samadhi.














3.9 व्मथु ान ननयोध सॊस्कायमोयलबबाव प्रादबु ािवो ननयोध ऺण धित्तान्वमो ननयोध ऩरयणाभ्


जफ सॊस्कायो व र्विायो के उत्थान औय प्रादबु ािव के फीि के ऺण, उनके प्रक् औय अप्रक् होने के भध्म के ऺण ऩय


ध्मान रगामा जाता है तफ उस अवस्था को ननयोध ऩरयणाभ कहते है


Nirodhah-parinamah occurs in the moment of transition when there is a convergence of the rising


tendency of deep impressions, the subsiding tendency.














3.10 तस्म प्रशान्त वादहता सस्ॊ कायात्


इस अवस्था का रगाताय अभ्मास कयने से इसभें लसर्द्ध होती है


The steady flow of this state continues by the creation of deep impressions from doing the practice.














3.11 सवािथितेकाग्रत्मो् ऺमोदमो धित्तस्म सभाधध ऩरयणाभ्


जफ इस प्रकाय धित्त भें सॊस्कायो व र्विायो के उत्थान व प्रादबु ािव की प्रकृनत बी शाॊत हो जाती है औय वह एकाग्र हो


जाता है इस अवस्था को सभाधध ऩरयणाभ कहते है


The mastery called samadhi-parinamah is the transition whereby the tendency to


all-pointedness subsides, while the tendency to one-pointedness arises














3.12 तत् ऩनु ् शान्त उददतौ तल्ुम प्रत्ममौ धित्तस्म एकाग्रता ऩरयणाभ्


जफ धित्त भें इस सॊस्कायो व र्विायो की एकाग्रता की श्र्स्थनत औय इसके न होने की श्र्स्थनत बी आऩस भें एकस्वरूऩ


होकय सॊऩणू ि एकाग्रता भें ऩरयवनतति हो जाए इस अवस्था को एकाग्रता ऩरयणाभ कहते है


The mastery called ekagrata-parinamah is the transition whereby the same one-pointedness arises and subsides


sequentially. when the mind’s content is the same as it was when it is subsiding and when it is emerging.














3.13 एतने बतू श्र्ेन्द्रमासुधभि रऺणावस्था ऩरयणाभा व्माख्मात्


इन ऩरयवतनि की तीनो अवस्थाओ से ही वस्तओु का रूऩ ,धभि ,गणु आदद औय उनका इश्र्न्द्रमों के साथ सभन्वम कहा


गमा है


These three transition processes also explain the three transformations of form,


time, and characteristics, and how these relate to the material elements and senses.














3.14 शान्त उददत अव्माऩदेस्म धभि अनऩु ानत धलभि


जफ उद्गाभी, अप्रक् औय प्रादबु ािव वेगो व र्विायो की ऩणू ि तयह से अवननत हो जाती है इसी को आधाय अवस्था


कहा गमा है


When the collapsed, emergent and latent forces reach full retrogression, that is the most basic condition.














3.15 कभािन्मत्वॊ ऩरयणाभान्मत्वे हेतु


इस ऩरयवतनि की र्वलशष्ता को ही वस्तओु के र्वलबन्न ऩरयणाभो ,गणु ों तथा र्वबश्र्लतमो का कायण कहा गमा है


Change in the sequence of the characteristics is the cause for the different


appearances of results, consequences, or effects.














3.16 ऩरयणाभ त्रमसॊमभ अनततानागत ऻानभ ्


इस ऩरयवतनि की र्वलशष्ता ऩय समॊ भ से बतु बर्वषम का ऻान होता है


By samyama on the three-fold changes in form, time, and characteristics, there


comes knowledge of the past and future.














3.17 शब्दाथि प्रत्ममानालभतयेतया अध्मसतसङ्कय् तत्प्रर्वबाग समॊ भ सवबि तू रुत ऻान


जफ शब्द ,उसक अथि औय उसका ऻान तीनो एक दसु ये के साथ व्माप्त हो जाए, इन तीनो की ऩथृ कता ऩय समॊ भ से


सबी प्राणणमों की धश्र्व्नमो का ऻान होता है


The name associated with an object, the object itself implied by that name, and the conceptual existence of the


object, all three usually interpenetrate or commingle with one another. By samyama on the distinction


between these three, the meaning of the sounds made by all beings becomes available














3.18 सॊस्काय साऺातकयणात ऩवूजि ानत ऻानभ ्


सस्ॊ कायो ऩय समॊ भ से ऩवुजि न्भो का ऻान होता है


Through the direct perception of the latent impressions (samskaras) comes the knowledge of previous incarnations.














3.19 ऩत्मिमस्म ऩयधित्त ऻानभ ्


र्विायो औय बावो ऩय सॊमभ से दसु ये के धित्त का ऻान होता है


By samyama on the notions or presented ideas comes knowledge of another's mind.














3.20 न ि तत्सारम्फनभ ्तस्म र्वषनमबतु त्वात्


इससे के वर उनके र्विायो औय बावो का ऻान होता है न की उनके सक्ष्ुभ बावो व उनके भरू का


But the underlying support of that knowledge (of the other persons mind, in3.19)


remains unperceived or out of reach.














3.21 कामरूऩ समॊ भा तत्ग्राह्मशश्र्लत स्तम्बे िऺु् प्रकाशासप्रॊ मोग अन्तधािनभ ्


जफ शयीय के रूऩ ऩय सॊमभ ककमा जामा उससे शयीय को अदृशम ककमा जा सकता है


When samyama is done on the form of one's own physical body, the illumination


or visual characteristic of the body is suspended, and is thus invisible to other people.














3.22 एतने शब्दादद अन्तधािनभ ्उलतभ ्


एसे ही वलबन्न सदृश समॊ भ से र्वलबन्न कामदेंद्रम ऩय जैसे के अऩनी धवनी ,स्ऩशि , सगु धॊ आदद ऩय लसर्द्धमा ऩा


सकता है


In the same way as described in relation to sight (3.21), one is able to suspend


the ability of the body to be heard, touched, tasted, or smelled














3.23 सोऩिभॊ ननरुऩिभॊ ि कभि तत्समॊ भाऩयान्त ऻानभरयस्तेभ्मो वा सखऩाकयाभाभ ्ननरुऩाकयभाभ ्िा काभाि


कभि दो प्रकाय के होते है किमाशीर औय प्रसप्ुत , उन ऩय समॊ भ सेआमुका ऻान होता है


Karma is of two kinds: active and dormant; by performing Samyama on them (is gained)


knowledge of the time of death














3.24 भैत्र्माददषुफरानन


लभत्रता ऩय सॊमभ से व्मव्हाय को फर लभरता है


By samyama on friendliness , there comes great strength of that attitude.














3.25 फरेषुहश्र्स्त फरददनन


हाथी के फर ऩय सॊमभ से उस जेसी शश्र्लत होती है


By samyama on the strength of elephants comes a similar strength.














3.26 प्रवत्ृतमारोकन्मासात्सक्ष्ूभ व्मवदहत र्वप्रकृस्् ऻानभ ्


स्वमॊ के आन्तरयक प्रकाश ऩय समॊ भ से सक्ष्ुभ र्वषमों का ऻान होता है


By bending upon them the awakened inner light, there comes a


knowledge of things subtle, or concealed, or obscure.














3.27 बवुन ऻानभ ्समू ेसमॊ भात्


समू दि ेव ऩय समॊ भ से वलबन्न ससॊ ाय का ऻान होता है


By perfectly concentrated Meditation on the sun comes the knowledge of the worlds.














3.28 िन्द्रे ताया व्महू ऻानभ ्


िॊद्र ऩय सॊमभ से र्वलबन्न नऺत्रो का ऻान होता है


By samyama on the moon, knowledge of the arrangement of the inner stars can be known














3.29 धुवेतद गनत ऻानभ ्


धुवि ऩय समॊ भ से उनकी गनत का ऻान होता है


By samyama on the pole-star, knowledge of the movement of those stars can be known.














3.30 नालब ििे कामव्महू ऻानभ ्


नालब िि ऩय समॊ भ से सम्ऩणू ि शयीय का फोध होता है


By samyama on the navel center, knowledge of the arrangement of the systems of the body can be known.














3.31 क्हकूऩे ऺुश्र्त्ऩऩासा ननवश्र्ृत्त्


कॊह कूऩ ऩय समॊ भ से बखू प्मास ऩय लसर्द्ध लभरती है


By samyama on the pit of the throat, hunger and thirst leave














3.32 कुभनि ाद्माॊ स्थैमभि ्


कुभि नाड़ी ऩय समॊ भ से वसै े ही श्र्स्थयता औय श्र्स्थरता लभरती है


By samyama on the tortoise channel, below the throat, steadiness is attained.














3.33 भर्द्ू ि् जमोनतर्ष लसद्धदशनि भ ्


शीषिि के प्रकाश ऩय सॊमभ से लसद्धो जैसे जमोनत लभरती है


By samyama on the coronal light of the head, visions of the siddhas, the masters can come.








3.34 प्रानतबादवा सवभि ्


औय ऩयभ ऻान ऩय समॊ भ से सबी वस्तओु का ऻान होता है


Or, through the intuitive light of higher knowledge, anything might become known.














3.35 दहदिमे धित्तसर्ॊ वत्


ह्रदम ऩय सॊमभ से धित्त का ऻान होता है


By practicing samyama on the heart, knowledge of the chitt is attained.














3.36 सत्त्व ऩरुुसमोयत्मन्तासश्र्न्कनमि ो् प्रत्ममार्वषसे ो बोग् ऩयाथत्ि वात स्वाथि समॊ भात ऩरुुष ऻानभ ्


प्रकृनत औय ऩरुुष ऩथृ क है कपय बी हभ इनका बेद नही सभझ ऩाते इस ऩय समॊ भ से आत्भऻान होता है


Experience results from the inability to distinguish between the individual spirit and the intelligence energy of


material nature, even though they are very distinct. By complete restraint of the mento-emotional energy while


focusing on self-interest distinct from the other interest, a yogi gets knowledge of the individual spirit.














3.37 तत् प्रनतबा श्रवण वेदना आदशि अस्वाद वाताि जामन्ते


इस ऻान से आरोककक शश्र्लतमों का ऻान होता है


From the light of the higher knowledge of that pure consciousness or purusha


arises higher, transcendental, or divine hearing, touch, vision, taste, and smell.














3.38 ते सभाधौ उऩसग्ि व्मत्ुथाने लसर्द्म्


मे लसर्द्धमा िॉकूक ससॊ ाय के लरए आश्िमि है कपय बी मे सभाधी के यास्ते भें फाधा है लमोंकक इनसे अहॊकाय व साॊसारयक


रगाव उत्ऩन्न होता है


These experiences resulting from samyama are obstacles to samadhi, but appear


to be attainments or powers to the outgoing or worldly mind.














3.39 फन्ध कायण शैधथल्मत प्रिाय सॊवेदनात ि धित्तस्म ऩयशयीयावेश्


फधॊ नो से भलुत होकय तथा धित्त के साथ अऩने फधॊ न जानकय ऩय शयीय भें प्रवेश का साभथ्मि आता है


By loosening or letting go of the causes of bondage and attachment, and by following the knowledge of how to go


forth into the passages of the mind, there comes the ability to enter into another body.














3.40 उदान जमाजजर ऩङ्क क्हकाददसुअसङ्ग् उतिाश्र्न्त् ि


उदान वामुऩय समॊ भ से जर आदद के बम से भश्र्ुलत लभरती है


By the mastery over udana, the upward flowing prana vayu, there is a cessation of contact with mud, water, thorns,


and other such objects, and there ensues the rising or levitation of the body














3.41 सभान जमाजजवरनभ ्


सभान वामुऩय समॊ भ से शयीय तजे भम हो जाता है


By mastery over samana, the prana flowing in the navel area, there comes effulgence, radiance, or fire.








3.42 श्रोत्राकाशमो् सफॊ न्ध समॊ भत ददव्मॊ श्रोत्रभ ्


आकाश औय धवनन ऩय समॊ भ से सफ कुछ सनु ने का आरोककक साभथ्मि लभरता है


By samyama over the relation between space and the power of hearing, the higher, divine power of hearing comes.














3.43 कामाकाशमो् सफॊ न्ध समॊ भत रघुतरु ा सभऩतश्र्त्त ि


शयीय औय आकाश के सम्फन्ध ऩय सॊमभ से आकाश भें र्वहाय कयने का साभथ्मि लभरता है


By Samyama on the relationship between the body and space (akasha) and by


concentrating on the lightness of cotton, passage through space can be attained.














3.44 फदहयकश्र्ल्ऩता वश्र्ृत्त् भहार्वदेहा तत् प्रकाशावणि ऺम्


जफ वश्र्ृत्तमों की फाह्म कल्ऩना की जाती हैइसे भहार्वदेह कहते है ,इस ऩय समॊ भ कयने सेआत्भप्रकाश का उदम


होता है


When the formless thought patterns of mind are projected outside of the body, it is called maha-videha, a great


disincarnate one. By samyama on that outward projection, the veil over the spiritual light is removed.








3.45 स्थूर स्वरुऩ सक्ष्ूभान्वम अथिवत्त्व सॊमभाद बतू जम्


बतू ों की प्रकृनत जैसे की स्थूर सक्ष्ुभ सारुप्म सभन्वम औय अथवि आदद ऩय समॊ भ से उन ऩय ननमत्रॊ ण लभरता है


By samyama on the five forms of the elements (bhutas), which are gross form, essence,


subtleness, interconnectedness, and its purpose, then mastery over those bhutas is attained.














3.46 ततो अननभा आदद प्रादबु ािव् कामा सऩॊ द् तद धभािनलबघत ि


तत्वों ऩय समॊ भ से अणणभा आदद प्रभखु लसर्द्धमा प्राप्त होती है


Through that mastery over the elements, comes the abilities of making the body atomically small, perfect, and


indestructible in its characteristics or components, a well as bringing other such powers.














3.47 रूऩ राव्म फर वज्र सॊहननत्वानन कामा सम्ऩत्


इनसे तेज ,साभथ्मि ,फर आदद प्राप्त होता है


This perfection of the body includes beauty, gracefulness, strength, and


adamantine hardness in taking the blows that come.














3.48 ग्रहण स्वरुऩ अश्र्स्भतान्वम अथिवत्त सॊमभाद इश्र्न्द्रम जम्


फोध ऺभता, अश्र्स्भता ,सभन्वम ,इश्र्न्द्रमों आदद ऩय सॊमभ से इनके सदृश इन ऩय लसर्द्धमा प्राप्त होती है


By samyama on the process of perception and action, essence, I-ness, connectedness, and purposefulness of senses


and acts, mastery over those senses and acts (indriyas) is attained.














3.49 ततो भनोजर्वतॊ र्वकयणबाव् प्रधान जम् ि


इन ऩय लसदर्द्मो से भनोफर तथा आदद अश्र्स्तत्व का ऻान होता है


By that mastery over the senses and acts (indriyas), there comes quickness of mind, perception with the physical


instruments of perception, and mastery over the primal cause out of which manifestation arises














3.50 सत्त्व ऩरुुषान्मता ख्मानतभात्रस्म सवबावधधषह् तयत्वा सवऻि ातत्ृवॊ ि


जफ मोगी का वैयाग्म हो जाता है सॊसारयकता से तफ उसे सब िीजो का ऻान हो जाता है


When the spiritual man is perfectly disentangled from the psychic


body, he attains to mastery over all things and to a knowledge of all.














3.51 तद वयैाग्मार्ऩ दोष फीज ऺमे कैवल्मभ ्


जफ इस िीज से बी वयैाग्म हो जाता हैतफ फधॊ न के कायणों से भश्र्ुलत हो जाती हैऔय कैवल्म की प्राश्र्प्त हो जाती


है


With non-attachment or desirelessness even for that supremacy over forms and states of existence and the


omniscience (3.50), the seeds at the root of those bondages are destroyed, and absolute liberation is attained.














3.52 स्थानन उऩननभन्त्रणे सगॊ सभम अकायणभ ्ऩनु ्ु अननस्त प्रसङ्गत


आरोककक शश्र्लतमो के ननभत्रॊ ण ऩय भन भें अहॊकाय का बाव नही उदम होना िादहए लमोंकक इससे कपय से वश्र्ृत्तम


उत्ऩन्न होती है


When invited by the celestial beings, no cause should be allowed to arise in the mind that would allow either


acceptance of the offer, or the smile of pride from receiving the invitation, because to allow such thoughts to arise


again might create the possibility of repeating undesirable thoughts and actions.














3.53 ऺण तत्िम्मो् सॊमभात र्ववेकाजॊ ऻानभ ्


ऺण कभिन्वम ऩय सॊमभ से ऻान का फोध होता है


By samyama over the moments and their succession, there comes the higher


knowledge that is born from discrimination














3.54 जानत रऺण देशान्मतानवच्च्हेदत तल्ुममो् तत् प्रनतऩश्र्त्त्


इस ऻान से प्रकृनत औय ऩरुुष भें र्ववेक कयने की ऺभता प्राप्त होती है


From that discriminative knowledge (3.53) comes awareness of the difference or distinction between two similar


objects, which are not normally distinguishable by category, characteristics, or position in space.














3.55 तायकॊ सवर्िवषमॊ सवथि ा र्वषमिॊ भॊ ि इनत र्ववके जॊ ऻानभ ्


इस ऻान भें सफ ऻान औय सब र्वषम सश्र्म्भलरत होते है तथा मह सफसे ऩये होता है


That higher knowledge is intuitive and transcendent, and is born of discrimination; it includes all objects


within its field, all conditions related to those objects, and is beyond any succession.














3.56 सत्त्व ऩरुुसमो् शर्ुद्ध साम्मे कैवल्मलभनत


तफ प्रकृनत औय ऩरुुष आऩस भें र्वरीन हो जाते है सारुप्म हो जाते हैतफ फधॊ न भलुत कैवल्म की प्राश्र्प्त होती है


When there is equal purity between the intelligence energy of material nature and the spirit, then there is total


separation from the mundane psychology.


कै वल्म ऩद KAIVALYA PADA














4.1 जन्भोषाधध भन्त्र तऩ् सभाधधजा् लसद्द्मम्


मे लसर्द्धमा जन्भ औसर्द्ध भॊत्र औय ध्मान आदद से प्राप्त होती है


The subtler attainments come with birth or are attained through herbs, mantra, austerities or concentration.














4.2 जात्मन्तय ऩरयणाभ् प्रकृत्माऩयुात्


इनकी ऩयीवतति ा इनके प्राकनतकि गणु ों के कायण होती है


The transformation of form takes place through the flow of the natural creative forces.


or through the filling in of their innate nature.














4.3 ननलभत्तभप्रमोजकॊ प्रकृतीनाॊ वयण बेदस्तुतत् ऺत्रेत्रकवत्


मह प्राश्र्प्त लसपि साभथ्मि से नही होती फश्र्ल्क फाधाओ को ह्ाने से होता है जैसे एक ककसान लसिाई कयते वक़्त ऩानी


के यस्ते भें आने वारी फाधाओ को ह्ाता है


Incidental causes or actions do not lead to the emergence of attainments or realization, but rather, come by the


removal of obstacles, much like the way a farmer removes a barrier, so as to naturally allow the irrigation of his


field.














4.4 ननभािण धित्तान्मश्र्स्भत भात्रात्


धित्त भें वश्र्ृत्तमों का ननभाणि अहॊकाय के कायण होता है


The formation of regions within the "chitt", arises only from the sense of identity(egoism)


which is developed in relation to material nature.














4.5 प्रवश्र्ृत्तबेदे प्रमोजकॊ धित्तभेकभनेकेषाभ ्


इन सफ वश्र्ृत्तमों से औय वश्र्ृत्तमों का ननभाणि होता हैऩय इन सफ का कायण एक अहॊकाय होता है


However many images of one(mind field) may build within oneself, all these are projected by a single ego-sense in


the "chitt".














4.6 तत्र ध्मानजभनासमभ ्


इनभे से जो ध्मान के द्वाया उत्ऩन्न होती हैवह िभपर से भलुत होती है


Of these mind fields, the one that is born from meditation is free from any latent


impressions that could produce karma














4.7 कभािशलु राकिषानभ ् मोधगन् त्रत्रर्वधलभतयेषाभ ्


तफ मोगी के िभ अच्छे फयुे नही होते फश्र्ल्क औयो के लरए नतन तयह से है


The actions of yogis are neither white nor black, while they are threefold for others.














4.8 तत् तद र्वऩाकानगु नु ानाभेवालबव्मश्र्लत् वासनानाभ ्


श्र्जनके ऩरयणाभ से वासनाए उत्ऩन्न होती है जो कभि तथा कभिपर को जनभ देती है


Those threefold actions result in latent impressions (vasanas) that will later arise


to fruition only corresponding to those impressions.














4.9 जानत देश कार व्मवदहतनभ ्अर्ऩ आनन्तमं स्भनृत सस्ॊ कमो् एक रुऩत्वात्


िॉूकक मे वासनाए जाती कार देश के अनसु ाय लबन्न बीॊ होती हैऩयन्तुइनसे जो कभो की उत्ऩश्र्त्त होती हैऔय जो


सॊस्काय उत्ऩन्न होते है वे एकस्वरूऩ होते है


Even though circumstances(actions) are separated by status, location and time, still the deep


habit patterns (samskaras) and the resulting memories created are same(of one form) for everyone














4.10 तासाभनाददत्वॊ ि आलशष् ननत्मत्वात्


सॊस्कायो की उत्ऩश्र्त्त की कोई सीभा नही है लमोंकक इछामे फहुत सी हैऔय हभेशा फनी यहती है


There is no beginning to the process of these deep habit patterns (samskaras),


as the eternal nature of the desires(will to live)














4.11 हेतुपराश्रमारफॊ न सगॊ दृहतत्वादेषाभबावे तदबाव्


िॉूकक सस्ॊ कायो का आधाय ससॊ ाय से रगाव है, इसके ह्ने ऩय मे बी लभ् जाते है


Since the patterns (4.10) are held together by cause, motive, substratum,


and object, they disappear when those deep impressions disappear.














4.12 अनततानागतॊ स्वरूऩतो अस्तमअध्वबेदात धभाणि भ ्


वतभि ान भें बतु औय बर्वषम ऩथृ क ऩनतति होते है, जो इनके प्राकृनतक गणु ों के कायण है


Past and future exist in the present are appearing to be different because of


having different characteristics or forms.














4.13 ते व्मलत सक्ष्ूभा गणु ात्भान्


मे सक्ष्ुभ मा स्थूर होते हैइनके प्रकृनत के अनसु ाय


They are gross or subtle, all depending on their inherent nature(gunas)














4.14 ऩरयणाभेकत्वात वस्ततु त्तवभ ्


इनका अश्र्स्तत्व इनके उत्ऩश्र्त्त की र्वलशष्ता से है


The essence of the object consists in the uniqueness of transformation (of the Guna’s).














4.15 वस्तसु ाम्मे धित्त बेदत्तमो् र्वबलत् ऩन्था्


एक ही वस्तुको ऩथृ क ऩथृ क बेदों से, नजयमो से देखा जाता हैलमोंकक उनका फोध कयने वारा धित्त ऩथृ क ऩथृ क


रूऩ से व्मलत है


Although the same objects may be perceived by different minds, they are


perceived in different ways, because those minds manifested differently.














4.16 न ि एक धित्त तन्त्रॊ िेद वस्तुतत्प्रभाणकभ ्तदा ककॊ स्मात्


जफकक की वस्तुउसके फोध की ऩथृ कता ऩय आधश्रत नही हैलमोंकक अगय ऐसा होता तो तफ लमा होता जफ उसका


फोध ही नही होता


However, the object itself does not depend on any one mind, for if it did, then


what would happen to the object if it were not being experienced by that mind?








4.17 तदऩुयागाऩेश्र्लसत्वत धित्तस्म वस्तुऻाताऻातभ ्


वस्तुऻात हैमा अऻात हैजैसे की हभ उसका फोध कयते है


Objects are either known or not known according to the way in which they perceived by "chitt" and they percept.














4.18 सदा ऻाताधित्त वत्ृतम् तत्प्रबो् ऩरुुसस्माऩरयणालभत्वात्


इन वश्र्ृत्तमों का हभेशा हभाये शद्धु स्वरूऩ को फोध होता हैलमोंकक वह इन सफका ऻाता है


The activities of the mind are always known by the pure consciousness, because


that pure consciousness is superior to, support of, and master over the mind.














4.19 न तत्स्वाबासॊ दृश्मत्वात्


भन स्वमॊ प्रकाशभम नही हैलमोंकक इसको बी एक वस्तुकी तयह फोर्द्धत ककमा जा सकता है


The Mind is not self-luminous, since it can be seen as an object.














4.20 एकसभमे ि उबमानवधायणभ ्


न ही मह एक ही सभम खदु का फोद्ध कय सकता हैलमोंकक तफ मह खदु एक वस्तुकी तयह कैसे फोर्द्धत हो सकता


है लमोंकक उस्सी सभम मह तो फोद्ध कय यहा होता है


Nor can both the mind and the illuminating process be cognized simultaneously.


it is impossible for it is to be of both ways (as perceiver and perceived) at the same time.














4.21 धित्तान्तय दृश्मे फर्ुद्धफर्द्ुेयनतप्रसङ्ग् स्भनृत सङ्कय् ि


अगय ऐसे होता तो इसका एक अॊतहीन िभ उत्ऩन्न होता है श्र्जससे की सॊशम उत्ऩन्न होता है


If the Mind be thought of as seen by another more inward Mind,


then there would be an endless series of perceiving Minds, and a confusion of memories.














4.22 धित्तयेप्रनतसिॊ भम् तदाकायाऩत्तौ स्वफर्ुद्ध सवॊ ेदनभ ्


जफ प्रकृनत आत्भा जैसे, ऩरयवनतित होकय प्रनतत्रफश्र्म्फक होकय एकरूऩ हो जाती है तफ इसे स्वमॊ का फोध होता है


When the psychical nature takes on the form of the spiritual intelligence, by reflecting it,


then the Self becomes conscious of its own spiritual intelligence.














4.23 द्रश्र्स्त्र दृश्मोऩयलतॊ धित्तभ ्सवािअिथभि ्


तफ िॉूकक द्रष्ा औय फश्र्ृष् मही होती हैतफ इसे सब िीजों का फोध होता है


The psychic nature, taking on the color of the Seer and of things seen, leads to the perception of all objects.














4.24 तद असन्खेम वासनालब् धित्तभर्ऩ ऩयाथं सहॊ त्मकायीत्वात्


धित्त श्र्जसभे की असॊख्म वासनाए होती हैअफ शद्धु होकय अऩने स्वरूऩ के सदृश होता है


The psychic nature, which has been printed with mind-images of innumerable material things,


exists now for the Spiritual Man, building for him because of its proximity to that other force.








4.25 र्वशेष दलशिन् आत्भ बावबावना र्वननवश्र्ृत्त्


श्र्जसको इस ऻान का फोध होता है उसभे से लभथ्माबाव लभ् जाता हैऔय खदु के अश्र्स्तत्व को जानने की श्र्जऻासा


खत्भ हो जाती है


For one who has experienced this distinction between seer and the spirit itself,the false identities and even the


curiosity about the nature of one's own self come to an end.














4.26 तदा र्ववेकननम्नॊ कैवल्म प्रग्बायॊ धित्तभ ्


तफ धित्त उस कैवल्म की तयप एकाधग्रत होता हैऔय वह भश्र्ुलत के लरए केश्र्न्द्रत होता है


Then the mind is inclined towards the highest discrimination, and gravitates


towards absolute liberation between seer and seen.














4.27 तश्र्च्छद्रेसुप्रत्ममान्त्राणण सॊस्कायेभ्म्


त्रफि त्रफि भें ऩवू ि सस्ॊ कायो के कायण कुछ वश्र्ृत्तम उत्ऩन्न बी होती है


In the intervals other mind contents arises from the force of Samsara’s








4.28 हानभेषाॊ लरेशवदलुतभ ्


इनको बी दखु दामी सभझकय इनका बी ननवायण होना िादहए


These are to be overcome as it was taught that all "kleshas" should be overcome.






4.29 प्रसन्ख्मने अर्ऩ अकुलसदस्म सवथि ा र्ववेकख्माते् धभि-भेघ् सभाधध्


जफ इस ऩयभप्रकाश, ऩयम्फौद्ध भें बी कोई श्र्जऻासा नही यहती तफ सभाधध की अवस्था आती है


When there is no longer any interest even in omniscience, that discrimination allows the samadhi.




4.30 तत् लरेश कभि ननवश्र्ृत्त्


तफ इन सफ लरेशो से ननवश्र्ृत्त होती है


Thereon comes freedom from sorrow and the fruits of actions.




4.31 तदा सवािवयण भराऩेतस्म ऻानस्म अनन्त्मत ऻमे ॊ अल्ऩभ ्


तफ इन सब वश्र्ृत्तमों के ह्ने से ऩयभऻान का फोध होता हैऔय अनतॊ का ऻान होता है


Then, by the removal of those veils of imperfection, there comes the experience


of the infinite, and the realization that there is almost nothing to be known




4.32 तत् कृताथािनाॊ ऩरयणाभ िभ सभाश्र्प्त् गणु ानाभ ्


तफ प्रकृनत के तीनो गणु बी कृताथि हो िुके होते हैऔय वे बी अऩनी प्रकृनत भें रम हो जाते है


Then also the three primary elements or gunas will have fulfilled their purpose, cease to


transform into further transformations, and recede back into their essence.




4.33 ऺण प्रनतमोगी ऩरयणाभाऩयान्त ननग्राह्म् िभ्


ऺणों के उत्थान औय प्रादबु ाव का बी अच्छी तयह से फोध व उनका अतॊ हो जाता है


The sequencing process of moments and impressions corresponds to the moments of time


comes to an end and is clearly perceived.




4.34 ऩरुुषाथि सनु मानाभ ्गणु ानाॊ प्रनतप्रसव् कै वल्मॊ स्वरुऩप्रनतषहा वा धिनतशश्र्लतरयनतभ ्


जफ प्रकृनत के सब गणु बी रमभम हो जाते है, औय शद्धु ऩयभफोध धित्त कैवल्म भें स्थार्ऩत हो जाता है


When those primary elements involve, or resolve themselves back into that out of which they emerged, there comes


liberation, wherein the power of pure consciousness becomes established in its true nature.

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