॥ देवी कवच ॥
विनियोग –
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् , दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥
ॐ नमश्चण्डिकायै ॥
अर्थ – ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।
[ मार्कण्डेय उवाच ]
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥
अर्थ – [ मार्कण्डेय जी ने कहा ] पितामह ! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये ।