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गायत्री महामंत्र, भावार्थ, उत्पत्ति, स्वरूप एवं महत्व

गायत्री महामंत्र, जिसे "गायत्री मंत्र " भी कहा जाता है, एक प्राचीन और महत्वपूर्ण मंत्र है। इसका वर्णन वेदों में मिलता है, विशेषकर ऋग्वेद में। इस मंत्र का पाठ मानसिक शांति, ज्ञान की प्राप्ति और आत्मिक विकास के लिए किया जाता है। हिंदू धर्म में उपनयन संस्कार के लिए यह मंत्र बहुत महत्वपूर्ण है। धर्मशास्त्रों में गायत्री महामंत्र की अपार महिमा एवं सिद्धि का गुणगान किया गया है। यह एक प्राचीन वैदिक प्रार्थना है जो सूर्य के दिव्य प्रकाश का आह्वान करती है, ज्ञान और स्पष्टता की मांग करती है। मान्यता के अनुसार गायत्री मंत्र पहली बार संस्कृत में ऋग्वेद में दर्ज किया गया था।

गायत्री महामंत्र के इस प्रकार से है

"ॐ भूर् भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।"

गायत्री मंत्र का अर्थ है,

 'हे प्राणस्वरूप, दुःखहर्ता और सर्वव्यापक आनंद को देने वाले प्रभो! आप सर्वज्ञ और सकल जगत के उत्पादक हैं. हम आपके उस पूजनीयतम, पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है'

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