हाथ देखते समय सामान्यतः यह प्रश्न उठता है कि हाथ देखते समय दायाँ हाथ देखा जाए या बायाँ ?
हाथ देखने के एक से अधिक मत है जो इस प्रकार से है -
प्राचीन वैदिक ज्योतिष आधारित भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार स्त्री का बायाँ हाथ और पुरुष का दायाँ हाथ देखने का निर्देश दिया गया है। प्राचीन शास्त्र मे यह भी संकेत मिलता है कि स्त्री यदि काम काजी महिला हो यानी वह आत्मनिर्भर हो तो उसका दायाँ हाथ देखा जाना चाहिए, इसके विपरीत यदि कोई पुरुष बेरोजगार हो या आत्मनिर्भर न हो तो उसका बायाँ हाथ देखा जाना चाहिए।
इस संबंध में मॉडर्न फिजियालोजी का पक्ष है कि
मस्तिष्क का बायाँ गोलार्ध शरीर के दायें भाग के अंगो को संचालित करता है
दायाँ गोलार्ध शरीर के बाये भाग को संचालित करता है।
मस्तिष्क के शोध के अनुसार मस्तिष्क के बाये गोलार्ध में गणित तथा विश्लेषण की योग्यता के केंद्र है दायाँ गोलार्ध भाव जगत तथा ललित कलाओ से
संबंधित है।साथ ही दायाँ गोलार्ध अंत:
प्रेरणा जैसी शक्तियों का भी केंद्र स्थल है । इन दोनों गोलार्धो का आपस में
समन्वय होता है
पश्चिमी पामिस्टो का मत
पश्चिमी पामिस्टो का मत के अनुसार दाये हाथ से तर्कशक्ति और वाक्शक्ति की योग्यता "देखनी
चाहिए और बाये हाथ से व्यक्ति की भावना क्षमता और अंत : प्रेरणा जैसी अलौकिक
शक्तियों की मात्रा जाननी चाहिए। यहाँ यह स्पष्ट करना चाहते है कि अलौकिक शक्तियाँ
वे मानसिक शक्तियाँ है, जिनके कारण विज्ञान नही खोज सका है।
पश्चिम के कुछ पामिस्ट कहना है कि व्यक्ति के
आरंभिक पैतीस वर्षो तक जन्मजात प्रवृतियो का प्रभाव होता है, शायद इसलिए कि जीवन का आरंभिक भाग व्यक्ति के पूर्वजो के
प्रभाव में होता है अत: आयु के पैतीस वर्ष के पूर्व का विवरण बाये हाथ के अनुसार बताना चाहिए और पैतीस वर्ष के बाद की आयु में व्यक्ति का भाग्य अपनी बुध्दिमानी
से बनता है या अपनी मूर्खता से बिगड़ता है। अत: पैतीस वर्ष के बाद का हाल दाये हाथ से जानना चाहिए ।
विख्यात पामिस्ट कीरो का मत
विख्यात पामिस्ट कीरो के अनुसार बायाँ हाथ व्यक्ति की जन्मजात विशेषताए बताता है और दायाँ
हाथ व्यक्ति के अपने कर्मो व्दारा होने वाले परिवर्तनों की सूचना देता है अत:
दोनों हाथ देखने चाहिए लेकिन प्रमुखता दाये हाथ को देनी चाहिए इस विषय में स्त्री
- पुरुष में भेद नही समझना चाहिए।
निष्कर्ष
प्राचीन और नवीन अनुसंधानों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचते है की अधिकतर व्यक्ति दाये हाथ से काम करते है इससे
प्रकट होता है कि अधिकतर व्यक्तियों के मस्तिष्क का बायाँ गोलार्ध अधिक क्रियाशील
है बाये मस्तिष्क की अधिक क्रियाशीलता का प्रभाव उसके दाये हाथ पर अधिक होता है
बहुत कम व्यक्ति बाये हाथ से कार्य करते है, उनके मस्तिष्क का दायाँ गोलार्ध अधिक क्रियाशील होता है। अतः जिसका जो
हाथ अधिक क्रियाशील होता है अर्थात जिस हाथ से वह लिखता - पढ़ता है , उसे उस व्यक्ति का मुख्य हाथ माने और कीरो के निष्कर्ष को
अनुभवों के साथ मिलाने से इस परिणाम पर पहुँचते है
कि जन्मजात प्रवृतियो को गौण हाथ यानि बाये हाथ पर
देखे और व्यक्ति की अपनी योग्यता का विवरण मुख्य हाथ यानि दाये हाथ पर देखे । उसमे स्त्री - पुरुष का भेद न करे बल्कि व्यक्ति की हस्त - परीक्षा करते समय केवल इतना जानकारी ले की वह बाये हाथ से
लिखता है या दाये हाथ से ।
अधिकतर व्यक्ति दाये हाथ से काम करते है। यदि व्यक्ति के बाये हाथ की रेखाए और लक्षण शुभ हो, दाये के अशुभ हो तो यह समझे कि उस व्यक्ति में जन्मजात
योग्यता अधिक थी उसने अपने भाग्य को अपने कर्मो से बिगाड़ा है यदि बाये हाथ के
लक्षण अशुभ हो, दाये हाथ के लक्षण अच्छे हो तो यह माने कि
व्यक्ति ने अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर अपना भविष्य सुधारा है। अतः हाथ दोनों देखने चाहिए जो लक्षण दोनों हाथो पर एक जैसे हो, उन्हें निश्चित माने । हाथ देखते समय अतिरिक्त महत्व मुख्य
हाथ को दे यानि यदि वह दाये हाथ से लिखता है तो दाये को मुख्य माने बाये से लिखता
है तो बाये को मुख्य माने, उसमे स्त्री , पुरुष , बालक , वृध्द का कोई भेद न करे।
बहुत कम हाथ कम हाथ ऐसे होते है जिनमे दोनों हाथो की रेखाए और लक्षण एक जैसे
होते है यदि ऐसा हो तो व्यक्ति के जीवन में अधिक उतार - चढ़ाव नही होते।
यदि दोनों हाथ की रेखाओ और लक्षणों में भेद हो तो व्यक्ति के जीवन में उतार -चढ़ाव होते है वे उतार - चढ़ाव शुभ है या अशुभ , यह धीरे - धीरे अध्ययन और अभ्यास से पता चलता है।