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श्रीमद भागवत महापुराण महात्म - द्वितीय अध्याय Shrimad Bhagwat Mahapuran Mahatam - Chapter - 2


श्रीमद भागवत 
महापुराण महातम- द्वितीय अध्याय


द्वितीय अध्याय में "यमुना और श्रीकृष्ण पत्नियों का संवाद, कीर्तनोत्सव में उद्धव जी का प्रकट होने का वर्णन है"


ऋषियों ने पूछा ;- सूत जी! अब यह बतलाइये कि परीक्षित और वज्रनाभ को इस प्रकार आदेश देकर जब शाण्डिल्य मुनि अपने आश्रम को लौट गये, तब उन दोनों राजाओं ने कैसे-कैसे और कौन-कौन-सा काम किया?

सूत जी कहने लगे ;- तदनन्तर महाराज परीक्षित ने इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) से हजारों बड़े-बड़े सेठों को बुलवाकर मथुरा में रहने की जगह दी। इनके अतिरिक्त सम्राट् परीक्षित ने मथुरामण्डल के ब्राह्मणों तथा प्राचीन वानरों को, जो भगवान के बड़े ही प्रेमी थे, बुलवाया और उन्हें आदर के योग्य समझकर मथुरा नगरी में बसाया। इस प्रकार राजा परीक्षित की सहायता और महर्षि शाण्डिल्य की कृपा से वज्रनाभ ने क्रमशः उन सभी स्थानों की खोज की, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रेमी गोप-गोपियों के साथ नाना प्रकार की लीलाएँ करते थे। लीला स्थानों का ठीक-ठीक निश्चय हो जाने पर उन्होंने वहाँ-वहाँ की लीला के अनुसार उस-उस स्थान का नामकरण किया, भगवान के लीलाविग्रहों की स्थापना की तथा उन-उन स्थानों पर अनेकों गाँव बसाये। स्थान-स्थान पर भगवान के नाम से कुण्ड और कुएँ खुदवाये। कुंज और बगीचे लगवाये, शिव आदि देवताओं की स्थापना की। गोविन्ददेव, हरिदेव आदि नामों से भगवद्विग्रह स्थापित किये। इन सब शुभ कर्मों के द्वारा वज्रनाभ ने अपने राज्य में सब ओर एकमात्र श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार किया और बड़े ही आनन्दित हुए। उनके प्रजाजनों को भी बड़ा आनन्द था, वे सदा भगवान के मधुर नाम तथा लीलाओं के कीर्तन में संलग्न हो परमानन्द के समुद्र में डूबे रहते थे और सदा ही वज्रनाभ के राज्य की प्रशंसा किया करते थे।

श्रीमद भागवत महापुराण महात्म - प्रथम अध्याय Shrimad Bhagwat Mahapuran Mahatam - Chapter - 1


श्रीमद भागवत महात्म - प्रथम अध्याय

प्रथम अध्याय में "परीक्षित और वज्रनाभ का समागम, शाण्डिल्य जी के मुख से भगवान की लीला के रहस्य और व्रजभूमि के महत्त्व का वर्णन हैं"


महर्षि व्यास कहते हैं- जिनका स्वरूप है सच्चिदानन्दघन, जो अपने सौन्दर्य और माधुर्यादि गुणों से सबका मन अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं और सदा-सर्वदा अनन्त सुख की वर्षा करते रहते हैं, जिनकी ही शक्ति से इस विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होते हैं-उन भगवान श्रीकृष्ण को हम भक्तिरस का अस्वादन करने के लिये नित्य-निरन्तर प्रणाम करते हैं।

नैमिषारण्य क्षेत्र में श्रीसूत जी स्वस्थ चित्त से अपने आसन पर बैठे हुए थे। उस समय भगवान की अमृतमयी लीला कथा के रसिक, उसके रसास्वादन में अत्यन्त कुशल शौनकादि ऋषियों ने सूत जी को प्रणाम करके उनसे यह प्रश्न किया। ऋषियों ने पूछा- 'सूत जी! धर्मराज युधिष्ठिर जब श्री मथुरा मण्डल में अनिरुद्ध नन्दन वज्र का और हस्तिनापुर में अपने पौत्र परीक्षित का राज्याभिषेक करके हिमालय पर चले गये, तब राजा वज्र और परीक्षित ने कैसे-कैसे कौन-कौन-सा कार्य किया।'

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha Kunjika Stotram)



 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha Kunjika Stotram)

शिव उवाच-

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥  ।1।

 

अर्थ — शिव जी बोले देवी सुनो -

मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूंगा, जिस मन्त्र  के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है।

यदि आप भी करना चाहते हैं दान तो ध्यान रखें ये बात



पुराने समय से ही धन और अन्य वस्तुओं का दान करने की परंपरा चली आ रही है। आज भी काफी लोग दान करते हैं। दान से अक्षय पुण्य मिलता है और दुखों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, जरूरतमंद लोगों को भी खाना और दूसरी जरूरी चीजें मिल जाती हैं। दान किसे करना चाहिए, इस संबंध में ये बात ध्यान रखें कि जिन लोगों के पर्याप्त धन और सुख-सुविधाएं हैं, उन्हें दान न देकर ऐसे लोगों की मदद करें जिन्हें आवश्यकता हो। यहां जानिए एक सच्चे संत का किस्सा, जिसमें बताया गया है कि किसे दान देना श्रेष्ठ होता है...

अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया



एक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर में पानी नही था इसलिए उसकी पत्नी पडोस से पानी ले आई,  पानी पीकर पंडित ने पूछा....

पंडित - कहाँ से लायी हो बहुत ठंडा पानी है I

पत्नी - पडोस के कुम्हार के घर से ,
 (पंडित ने यह सुनकर लोटा फैंक दिया और उसके तेवर चढ़ गए वह जोर जोर से चीखने लगा )

पंडित - अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया, कुंभार ( शुद्र ) के घर का पानी पिला दिया। पत्नी भय से थर-थर कांपने लगी, उसने पण्डित से माफ़ी मांग ली
पत्नी - अब ऐसी भूल नही होगी। शाम को पण्डित जब खाना खाने बैठा तो घरमे खानेके लिए कुछ नहीं था.

पंडित - रोटी नहीं बनाई. भाजी
नहीं बनाई.

पत्नी - बनायी तो थी लेकिन अनाज पैदा करनेवाला कुणबी(शुद्र) था. और जिस कढ़ाई में बनाया था वो लोहार (शुद्र) के घर से आई थी। सब फेक दिया.

पण्डित - तू पगली है क्या कही अनाज और कढ़ाई में भी छुत होती है? यह कह कर पण्डित बोला की पानी तो ले आओ I

पत्नी - पानी तो नही है जीI

पण्डित - घड़े कहाँ गए हैI

पत्नी - वो तो मेने फैंक दिए क्योंकि कुम्हार के हाथ से बने थेI पंडित बोला दूध ही ले आओ वही पीलूँगा I
पत्नी - दूध भी फैंक दिया जी क्योंकि गाय को जिस नौकर ने दुहा था वो तो नीची (शुद्र) जाति से था न I

पंडित- हद कर दी तूने तो यह भी नही जानती की दूध में छूत नही लगती है I

पत्नी-यह कैसी छूत है जी जो पानी में तो लगती है, परन्तु दूध में नही लगती। पंडित के मन में आया कि दीवार से सर फोड़ ले। गुर्रा कर बोला - तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है I

पत्नी- खाट! उसे तो मैने तोड़ कर फैंक दिया है क्योंकि उसे शुद्र (सुतार ) जात वाले ने बनाया था.

पंडित चीखा - ओ फुलो का हार लाओ भगवन को चढ़ाऊंगा ताकि तेरी अक्ल ठिकाने आये.

पत्नी- फेक दिया उसे माली(शुद्र) जाती ने बनाया था.

पंडित चीखा- सब में आग लगा दो, घर में कुछ बचा भी हैं या नहीं.
पत्नी - हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोडना बाकी है क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के मजदूरों ने बनाया है I पंडित के पास कोई जबाब नही था .

उसकी अक्ल तो ठिकाने आयी बाकी लोगोकी भी आ जायेगी सिर्फ
इस कहानी आगे फॉरवर्ड करो हो सके देश मे जाती वाद खत्म हो जाये

जानिए मां बगलामुखी की कथा



देवी बगलामुखी जी के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.
इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ।
उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका. देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वम ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
पंडित "विशाल' दयानंद शास्त्री के अनुसार बगलामुखी आराधना में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है। साधना में पीत वस्त्र धारण करना चाहिए एवं पीत वस्त्र का ही आसन लेना चाहिए। आराधना में पूजा की सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए। आराधना खुले आकश के नीचे नहीं करनी चाहिए।
आराधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए । साधना डरपोक किस्म के लोगों को नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी देवी अपने साधक की परीक्षा भी लेती हैं। साधना काल में भयानक अवाजें या आभास हो सकते हैं, इससे घबराना नहीं चाहिए और अपनी साधना जारी रखनी चाहिए।
साधना गुरु की आज्ञा लेकर ही करनी चाहिए और शुरू करने से पहले गुरु का ध्यान और पूजन अवश्य करना चाहिए। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं, इसलिए साधना के पूर्व महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप अवश्य करना चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह करके करनी चाहिए। मंत्र का जप हल्दी की माला से करना चाहिए। जप के पश्चात् माला अपने गले में धारण करें।
साधना रात्रि में 9 बजे से 12 बजे के बीच प्रारंभ करनी चाहिए। मंत्र के जप की संखया निर्धारित होनी चाहिए और रोज उसी संखया से जप करना चाहिए। यह संखया साधक को स्वयं तय करना चाहिए।
साधना गुप्त रूप से होनी चाहिए। साधना काल में दीप अवश्य जलाया जाना चाहिए। जो जातक इस बगलामुखी साधना को पूर्ण कर लेता है, वह अजेय हो जाता है, उसके शत्रु उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते।
SOURCE - naidunia.jagran

धर्म के नाम पर पापा ये कैसे.........

एक गिद्ध का बच्चा अपने बाप से बोला "पापा आज मुझे इनसान का गोशत खाना हैं । गि द्ध बोला " ठीक हैं बेटा शाम को ला दुगा। गिद्ध उडा ओर एक सुअर का गोशत ले कर आया। 

गिद्ध का बच्चा बोला "पापा ये तो सुअर का गोशत है , मुझे तो इनसान का गोशत खाना हैं । गिद्ध बोला " रूक शाम तक मिल जाऐगा । गिद्ध फिर उडा ओर एक मरी गाय का गोशत ले कर आया । गिद्ध का बच्चा बोला "पापा ये तो गाय का गोशत है , मुझे तो इनसान का गोशत खाना हैं । गिद्ध उडा ओर उसने सुअर का गोशत एक मस्जिद के आसपास और गाय का गोशत मंदिर के पास फेक दिया। थोडी देर के बाद वहाँ ढेर सारी इनसानो की लाशे बिछ गई । 

ओउम के विस्तरित व्याख्या


अनंत ध्यान: सीखें ध्यान की एक शक्तिशाली प्रक्रिया - सद्गुरु से






Ramayan - All Episode at One Place

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ॐ मंत्र का आप कहीं गलत उच्चारण तो नहीं करते? - Sadhguru





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