Search This Blog

व्रत एवं पूजन विधि - करवा चौथ व्रत विधि

करवा चौथ

उत्तर-पूर्वी भारत में प्रशिद्ध करवा चौथ के व्रत वैवाहित स्त्रियों में प्रशिद्ध है| यह व्रत निर्जला ही किया जाता है। इस दिन समस्त स्त्रियाँ अपने-अपने पतियों की लम्बी उम्र के लिए भगवान शिव और गौरी की आराधना करतीं है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को मनाया जाता है। भारत के कई स्थानों पर इस पर्व को करवा के नाम से भी जाना जाता है|

करवा चौथ व्रत विधि

श्री करक चतुर्थी का यह व्रत करवा चौथ के नाम से प्रसिद्ध है। पंजाब , उतरप्रदेश , मध्यप्रदेश और राजस्थान का प्रमुख पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने पति के रक्षार्थ इस व्रत को रखती है। गोधुली की वेला यानी चंद्रयोदय के एक घंटे पूर्व श्री गणपति एवं अम्बिका गोर, श्री नन्दीश्र्वर, श्री कार्तिकेयजी , श्री शिवजी फ्रदेवी माँ पार्वतीजी के प्रतिप , प्रधान देवी श्री अम्बिका पार्वतीजी और
चन्द्रमा का पूजन किया जाता है। यह व्रत निर्जला किया जाना चाहिए परन्तु दूध , दधि , मेवा , खोवा का सेवन करके भी यह व्रत रखा जा सकता है। तात्पर्य यह है कि श्रद्धाप बंक विधि एवं विश्वास के साथ , आपनी मर्यादा के अनुकूल व्रत एवं पूजन करना चाहिए। विशेष बात यही है कि अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।  महिलाओं को पूजन के समय उपयुक्त लगने वाले वस्त्रो को पहन कर नथ , करधन आदि आभूषण पहन कर पूर्ण श्रृंगार करके पूजन के लिए तैयार होती है। नैवेध के लिए चावल की खीर ,पुआ , दहि वड़ा , चावल या चने की दाल का फरा ,चने की दाल की पूरी या अन्य तरह की पूरी और गुड़ का हलवा बनाना चाहिए।  देवताओं की प्रतिमा अथवा चित्र का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। पूजन के लिए स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए क्यूंकि ज्ञान ,कर्म , तेज और शक्ति का स्वामी सूर्य पूर्व में उदित होता है।

करक या करवा

करक का अर्थ करवा होता है| मिट्टी के कलशनुमा पात्र के मध्य में लम्बी गोलाकार छेद के साथ डंडी लगी रहती है. इस तरह के पात्र ताम्बे, चांदी एवं पीतल के भी होते है| इस करक या करवा पात्र को श्री गणेश का स्वरुप मानते है। करक के दान से सुख ,सौभाग्य , सुहाग , अचल लक्ष्मी एवं पुत्र की प्राप्ति होती है , ऐसा शास्त्र सम्मत है । ऐसी भी मान्ता एवं अटूट विश्वास है कि करक दान से सब मनोरधों की प्राप्ति होती है।

श्री चन्द्र अर्ग

श्री चन्द्र देव भगवान शंकर जी के भाल पर सुशोभित हैं| इस कारण श्री चन्द्रदेवजी की आराधना, उनका पूजन एवं अर्ग देकर संपन्न की जाती है। वस्तुतः शंकर जी की प्रतेक उपासना एवं गौरी जी के व्रत का पूजन चंद्रदेव को अर्ग देकर ही सम्पूर्ण होता है। अतः चन्द्र स्तुति || पूजन और आराधना विशेष फलदायी होती है।

पूजन की तैयारी

1. श्री गणेश
सुपारी पर रक्षासूत्र यानि मौली गोलाकार में इस तरह लपेटें कि सुपारी पूर्णतया ढक जाये| एक कटोरी या अन्य छोटे पात्र में थोडा सा अक्षत रखें| इस अक्षत पर गणेश रूप मौली को रखें|

2. माँ अम्बिका गौरी
पीली मिट्टी की गौर बनायें| मिट्टी गोलाकार करके उपरी सतह पर मिट्टी का त्रिकोण बनायें| मिट्टी उपलब्ध न होने पर एक ताम्बे के सिक्के पर रक्षासुत्र लपेटें एवं एक छोटे से लाल कपड़े से ढक दें| एक रोली की बिंदी लगाये अथवा बनी हुई बिंदी लगाये| भाव यह रखें कि माँ गौर का मुख है| अम्बिका गौर के स्वरुप को श्रद्धा पूर्वक गणेश जी के बगल में बायीं ओर रखें|

3. श्री नन्दीश्र्वर
एक पुष्प को श्री नन्दीश्र्वर का स्वरुप मान कर स्थान दें|

4. श्री कार्तिकेय
एक पुष्प को श्री कार्तिकेय का स्वरुप मान कर स्थान दें|

श्री नन्दीश्र्वर एवं श्री कार्तिकेय हो तो उत्तम है| श्री शंकर || पार्वती || गणेश || कार्तिकेय एवं श्री नन्दा का सम्मलित चित्र उपलब्ध रहता है| पुष्प स्वरुप रखना हो तो गणेश और गौरी के समीप दुसरे पात्र में अक्षत के ऊपर रखें|

5. श्री शंकर जी
प्रमुख देवता श्री शिव जी के शिवलिंग का चित्र गणेश गौर || नन्दीश्र्वर || कार्तिकेय के पीछे रखें|

6. श्री पार्वती जी
हल्दी एवं आंटे के सम्मिश्रण से पानी डाल कर घोल तैयार करें| येन एपन कहलाता है| इससे किसी गत्ते पर पार्वती जी का चित्र बनाये| चित्र में आभूषण पहनाने के लिए कील लगायें| जैसे कंठ में माला के लिए कील लगायी वैसे कंठ के दायें बायें कील लगायें| चरणों में पायल पहनाने के लिए दोनों चरणों के दोनों ओर कांटी लगाये| चरणों में पायल पहनाने के लिए दोनों चरणों के दोनों ओर कांटी लगायें| माँ के चरणों का भक्तिपूर्वक पूजन करें|

7. करवा
मिट्टी || तांबे || पीतल अथवा चांदी के २ करवा| करवा ना हो तो २ लोटा| करवा में रक्षा सूत्र बांधें| एपन से स्वास्तिक बनायें| दोनों करवों में कंठ तक जल भरें| या एक करवा में दुग्ध अथवा जल भरें| एक करवा में मेवा जो सास को दिया जाता है\ दुग्ध अथवा जल में भरे करवे में ताबें या चांदी का सिक्का डालें|

8. पूजन सामग्री
धुप || दीप || कपूर || रोली || चन्दन || सिंदूर || काजल इत्यादी पूजन समग्री थाली में दाहिनी ओर रखें| दीपक में घी इतना हो कि सम्पूर्ण पूजन तक दीपक प्रज्वालित रहे|

9. नैवेध
नवैध में पूर्ण फल || सुखा मेवा अथवा मिठाई हो| प्रसाद एवं विविध व्यंजन थाली में सजा कर रखे| गणेश गौर || नन्दी एवं कार्तिकेय और श्री शिव जी के लिए नैवेध तीन जगह अलग अलग छोटे पात्र में रखें|

10. जल के लिए ३ पात्र
१ आचमन के जल के लिए छोटे पात्र में जल भर कर रखे| साथ में एक चम्मच भी रखें|
२ हाथ धोने का पानी इस रिक्त पात्र में रखें|
३ विनियोग के पानी के लिए बड़ा पात्र जल भर कर रखें|

11. पुष्प
पुष्प एवं पुष्पमाला का चित्र स्वयं के दाहिनी ओर स्थापित करें|

12. चन्द्रमा
चंद्रदेव या चन्द्रमा का चित्र स्वयं के दाहिनी ओर स्थापित करें।

सब तैयारी हो जाने पर कथा सुने और फिर चन्द्रमा के निकलते ही श्री चंद्रदेव को अर्ग देकर भोजन ग्रहण करें।

Karwa Chauth is one of the significant festivals for all married women in India. On this day, women keep fast wishing for their husband's long life. The festival is particularly celebrated in Northern India. The fast starts in the early morning with Sunrise and lasts till moon rise till late evening. As per the lunisolar calendar of Hindus, the Karwa Chauth festival is observed in the Kartik month (in October or November). In many states of India, fast on this day is also kept by unmarried women for getting desired life-partner.

Translate