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कीलक स्त्रोतम (Kilak Stotram in Hindi & Sanskrit)
अर्गला स्तोत्रम (Argala Stotram) हिंदी अर्थ सहित
॥ अर्गला स्तोत्रम ॥
विनियोग – ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः , श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥
ॐ नमश्चण्डिकायै ॥
[ मार्कण्डेय उवाच ]
अर्थ – ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।
[ मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं – ]
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥ 1 ॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ 2 ॥
जानें सुंदर कांड में वर्णित उनचास पवन (वायु) के बारे में
जानें सुंदर कांड में वर्णित उनचास पवन अर्थात (वायु) के बारे में
सुंदर कांड के 25वें दोहे में तुलसी दास जी ने इसका वर्णन किए है । सुन्दर कांड में जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी, उस प्रसंग के बारे में लिखा है | कि
"हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।"
अर्थात :- जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो उनचासों पवन चलने लगे। हनुमान जी अट्टहास करके गरजे और आकार बढ़ाकर आकाश मार्ग से जाने लगे।
इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है यह तुलसी दास जी ने नहीं लिखा है , इसका वर्णन वेदों में लिखा हैं. तुलसी दासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य होता है, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।
यह जानकर आश्चर्य होगा कि वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और सम वायु, लेकिन ऐसा नहीं है।
जल के भीतर जो वायु है उसका शास्त्रों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।
ये 7 प्रकार हैं- 1. प्रवह, 2. आवह, 3. उद्वह, 4. संवह, 5. विवह, 6. परिवह और 7. परावह।
1. प्रवह :- पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणित हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं।
2. आवह :- आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्य मंडल घुमाया जाता है।
3. उद्वह :- वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्र लोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है।
4. संवह :- वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।
5. विवह :- पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है।
6.परिवह :- वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षि मंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तश्रर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
7. परावह :- वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
इन सातों वायु के सात-सात गण (संचालित करने वाले) हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं-
ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह 7x7=49, कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।
सनातन ज्ञान कितना अद्भुत ज्ञान है, अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं परंतु उनमें लिखी छोटी-छोटी बातों का गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक बातें ज्ञात होती हैं।
Source
सनातन धर्म ज्ञान
Palmistry - जाने हाथ देखते समय कौन सा हाथ देखे दायाँ हाथ देखे या बायां ?
हाथ देखते समय सामान्यतः यह प्रश्न उठता है कि हाथ देखते समय दायाँ हाथ देखा जाए या बायाँ ?
हाथ देखने के एक से अधिक मत है जो इस प्रकार से है -
प्राचीन वैदिक ज्योतिष आधारित भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार स्त्री का बायाँ हाथ और पुरुष का दायाँ हाथ देखने का निर्देश दिया गया है। प्राचीन शास्त्र मे यह भी संकेत मिलता है कि स्त्री यदि काम काजी महिला हो यानी वह आत्मनिर्भर हो तो उसका दायाँ हाथ देखा जाना चाहिए, इसके विपरीत यदि कोई पुरुष बेरोजगार हो या आत्मनिर्भर न हो तो उसका बायाँ हाथ देखा जाना चाहिए।
जानें बद्रीनाथ की पूजा अर्चना के लिए पुजारी के लिए क्या योग्यता होती है?
1. बद्रीनाथ की पूजा अर्चना के लिए पुजारी , शिव पूजा के लिए प्रसिद्ध केरल के नंबूदिरी ब्राह्मणों का एक तबका से ही चुना जाता.
नंबूदरीपाद ब्राह्मण ही बद्रीनाथ के पुजारी सकते हैं. इन्हें शंकराचार्य का वंशज माना जाता है. इन्हें रावल कहते हैं.
2. केरल के नंबूदरीपाद ब्राह्मणों में से रावल का चयन बद्रीनाथ मंदिर समिति ही करती है.
3. इनकी योग्यता कम से कम ये है कि इन्हें वहां के वेद-वेदांग विद्यालय का स्नातक और कम से कम शास्त्री की उपाधि होने के साथ ब्रह्मचारी भी होना चाहिए.
4. बद्रीनाथ में ब्रह्मचारी रहने तक ही कोई ब्राह्मण पुजारी पद पर रह सकता है.
5. उसे पूरे समय ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है, यानी स्त्रियों का स्पर्श भी पाप माना जाता है.
वीडियो को अंत तक देखने के लिए धन्यवाद.
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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha Kunjika Stotram)
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha Kunjika Stotram)
शिव उवाच-
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥ ।1।
अर्थ — शिव जी बोले देवी सुनो -
मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूंगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है।