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Ramayan - All Episode at One Place
ENTERTAINMENT TADKA: Ramayan - All Episode at One Place:
आत्मा को अमर क्यों माना जाता है?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आत्मा ईश्वर का अंश है। इसलिए यह ईश्वर की ही तरह अजर और अमर है। संस्कारों के कारण इस दुनिया में उसका अस्तित्व भी है। वह जब जिस शरीर में प्रवेश करती है, तो उसे उसी स्त्री या पुरुष के नाम से जाना जाता है।आत्मा का न कोई रंग होता है न रूप, इसका कोई लिंग भी नहीं होता।
ऋगवेद में बताया गया है1/164/38
जीवात्मा अमर है और शरीर प्रत्यक्ष नाशवान। यह पूरी शारीरिक क्रियाओं का अधिष्ठाता है, क्योंकि जब तक शरीर में प्राण रहता है, तब तक यह क्रियाशील रहता है। इस आत्मा के संबंध में बड़े-बड़े मेधावी पुरुष भी नहीं जानते। इसे ही जानना मानव जीवन का परम लक्ष्य है
बृहदारण्यक 8/7/1उपनिषद में लिखा है
आत्मा वह है जो पाप से मुक्त है, वृद्धावस्था से रहित है, मौत और शोक से रहित है, भूख और प्यास से रहित है, जो किसी वस्तु की इच्छा नहीं करती, इसलिए उसे इच्छा करनी चाहिए, किसी वस्तु की कल्पना नहीं करती, उसे कल्पना करना चाहिए। यह वह सत्ता है जिसको समझने के लिए कोशिश करना चाहिए। श्रीमद्भागवद्गीता में आत्मा की अमरता के विषय पर विस्तृत व्याख्या की गई है।
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता व न भूय:।
अजो नित्य: शाश्वतोअयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।
यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मती है और न मरती ही है न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाली है, क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।
वसांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणाति नरोअपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे नए शरीर को प्राप्त होती है। शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए 13 दिनों का समय लगता है। इसलिए इस दौरान आत्मा की शांति के लिए, पूजा- पाठ, दान-दक्षिणा आदि अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके बाद आत्मा पितृ लोक को प्राप्त हो जाती है। आत्मा की अमरता का यही दृढ़ विश्वास है।
SOURCE - BHASKER
कोई भी काम करें उसे अपना कर्तव्य समझकर ही करें
बहुत समय पहले की बात है एक राजा था। उसे राजा बने लगभग दस साल हो चुके थे। पहले कुछ साल तो उसे राज्य संभालने में कोई परेशानी नहीं आई। फिर एक बार अकाल पड़ा। उस साल लगान न के बराबर आया। राजा को यही चिंता लगी रहती कि खर्चा कैसे घटाया जाए ताकि काम चल सके। उसके बाद यही आशंका रहने लगी कि कहीं इस बार भी अकाल न पड़ जाए। उसे पड़ोसी राजाओं का भी डर रहने लगा कि कहीं हमला न कर दें।
एक बार उसने कुछ मंत्रियों को उसके खिलाफ षडयंत्र रचते भी पकड़ा था। राजा को चिंता के कारण नींद नहीं आती। भूख भी कम लगती। शाही मेज पर सैकड़ों पकवान परोसे जाते, पर वह दो-तीन कौर से अधिक न खा पाता। राजा अपने शाही बाग के माली को देखता था। जो बड़े स्वाद से प्याज व चटनी के साथ सात-आठ मोटी-मोटी रोटियां खा जाता था।
रात को लेटते ही गहरी नींद सो जाता था। सुबह कई बार जगाने पर ही उठता। राजा को उससे जलन होती। एक दिन दरबार में राजा के गुरु आए। राजा ने अपनी सारी समस्या अपने गुरु के सामने रख दी। गुरु बोले वत्स यह सब राज-पाट की चिंता के कारण है इसे छोड़ दो या अपने बेटे को सौंप दो तुम्हारी नींद और भूख दोनों वापस आ जाएंगी।
राजा ने कहा नहीं गुरुदेव वह तो पांच साल का अबोध बालक है। इस पर गुरु ने कहा ठीक है फिर इस चिंता को मुझे सौंप दो। राजा को गुरु का सुझाव ठीक लगा। उसने उसी समय अपना राज्य गुरु को सौंप दिया। गुरु ने पूछा अब तुम क्या करोगे। राजा ने कहा कि मैं व्यापार करूंगा। गुरु ने कहा राजा अब यह राजकोष तो मेरा है। तुम व्यापार के लिए धन कहां से लाओगे। राजा ने सोचा और कहा तो मैं नौकरी कर लूंगा।
इस पर गुरु ने कहा यदि तुमको नौकरी ही करनी है तो मेरे यहां नौकरी कर लो। मैं तो ठहरा साधूु मैंं आश्रम में ही रहूंगा, लेकिन इस राज्य को चलाने के लिए मुझे एक नौकर चाहिए। तुम पहले की तरह ही महल में रहोगे। गद्दी पर बैठोगे और शासन चलाओगे, यही तुम्हारी नौकरी होगी। राजा ने स्वीकार कर लिया और वह अपने काम को नौकरी की तरह करने लगा। फर्क कुछ नहीं था काम वही था, लेकिन अब वह जिम्मेदारियों और चिंता से लदा नहीं था।
कुछ महीनों बाद उसके गुरु आए। उन्होंने राजा से पूछा कहो तुम्हारी भूख और नींद का क्या हाल है। राजा ने कहा- मालिक अब खूब भूख लगती है और आराम से सोता हूं। गुरु ने समझाया देखें सब पहले जैसेा ही है, लेकिन पहले तुमने जिस काम को बोझ की गठरी समझ रखा था। अब सिर्फ उसे अपना कर्तव्य समझ कर रहे हो। हमें अपना जीवन कर्तव्य करने के लिए मिला है। किसी चीज को जागीर समझकर अपने ऊपर बोझ लादने के लिए नही।
सीख: 1. काम कोई भी हो चिंता उसे और ज्यादा कठिन बना देती है।
2. जो भी काम करें उसे अपना कर्तव्य समझकर ही करें। ये नहीं भूलना चाहिए कि हम न कुछ लेकर आए थे और न कुछ लेकर जाएंगे।
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