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आत्मा को अमर क्यों माना जाता है?

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आत्मा ईश्वर का अंश है। इसलिए यह ईश्वर की ही तरह अजर और अमर है। संस्कारों के कारण इस दुनिया में उसका अस्तित्व भी है। वह जब जिस शरीर में प्रवेश करती है, तो उसे उसी स्त्री या पुरुष के नाम से जाना जाता है।आत्मा का न कोई रंग होता है न रूप, इसका कोई लिंग भी नहीं होता।
ऋगवेद में बताया गया है1/164/38
जीवात्मा अमर है और शरीर प्रत्यक्ष नाशवान। यह पूरी शारीरिक क्रियाओं का अधिष्ठाता है, क्योंकि जब तक शरीर में प्राण रहता है, तब तक यह क्रियाशील रहता है। इस आत्मा के संबंध में बड़े-बड़े मेधावी पुरुष भी नहीं जानते। इसे ही जानना मानव जीवन का परम लक्ष्य है
बृहदारण्यक 8/7/1उपनिषद में लिखा है
आत्मा वह है जो पाप से मुक्त है, वृद्धावस्था से रहित है, मौत और शोक से रहित है, भूख और प्यास से रहित है, जो किसी वस्तु की इच्छा नहीं करती, इसलिए उसे इच्छा करनी चाहिए, किसी वस्तु की कल्पना नहीं करती, उसे कल्पना करना चाहिए। यह वह सत्ता है जिसको समझने के लिए कोशिश करना चाहिए। श्रीमद्भागवद्गीता में आत्मा की अमरता के विषय पर विस्तृत व्याख्या की गई है।
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता व न भूय:।
अजो नित्य: शाश्वतोअयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।
यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मती है और न मरती ही है न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाली है, क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।
वसांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणाति नरोअपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे नए शरीर को प्राप्त होती है। शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए 13 दिनों का समय लगता है। इसलिए इस दौरान आत्मा की शांति के लिए, पूजा- पाठ, दान-दक्षिणा आदि अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके बाद आत्मा पितृ लोक को प्राप्त हो जाती है। आत्मा की अमरता का यही दृढ़ विश्वास है।
SOURCE - BHASKER

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