✅ भाग 1 – समुद्र मंथन कथा (अमृत की प्राप्ति)
👉 यह कथा उस समय की है जब देवता और दानव बराबर शक्तिशाली हो गए थे।
देवताओं ने ऋषि दुर्वासा का अपमान किया था, जिससे वे बलहीन हो गए।
इन्द्र, विष्णुजी के पास गए।
🔹 भगवान विष्णु की योजना
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भगवान ने कहा – "समुद्र मंथन करो", जिससे अमृत प्राप्त होगा।
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देवताओं ने दानवों से संधि की।
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मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया,
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वासुकी नाग को रस्सी।
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भगवान ने कच्छप (कूर्म) अवतार लेकर पर्वत को समुद्र में धारण किया।
🔹 मंथन से निकले 14 रत्न
समुद्र मंथन से अद्भुत वस्तुएँ निकलीं:
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हलाहल विष – शिवजी ने पी लिया, नीलकंठ कहलाए।
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कामधेनु, ऐरावत हाथी, उच्चै:श्रवा घोड़ा, कल्पवृक्ष, अप्सराएँ, चंद्रमा
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लक्ष्मी देवी – भगवान विष्णु से विवाह।
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धन्वंतरि वैद्य – हाथ में अमृत कलश।
🔹 अमृत विवाद और मोहिनी रूप
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दानवों ने अमृत छीनने की कोशिश की।
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भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया – अप्सरा रूप में सबको मोहित किया।
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मोहिनी ने चालाकी से अमृत देवताओं को बाँट दिया।
📌 एक दानव (राहु) ने भी देवता बनकर अमृत पी लिया।
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सूर्य और चंद्र ने पहचान लिया।
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भगवान ने सिर काट दिया – सिर राहु बना, धड़ केतु बना।
✅ भाग 2 – अजामिल चरित्र (नाम-स्मरण की महिमा)
👉 यह कथा बताती है कि भगवान का नाम लेने मात्र से मुक्ति मिलती है।
🔹 अजामिल कौन था?
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एक समय एक ब्राह्मण युवक था – बड़ा ही विद्वान और सदाचारी।
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एक दिन वन में एक वेश्या को किसी के साथ अनुचित आचरण करते देखा।
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उसके मन में विकार आया और वह भी वेश्या के साथ रहने लगा।
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अपने धर्म-पथ से भटक गया।
👉 उसने 10 संतानें पैदा कीं।
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सबसे छोटे बेटे का नाम रखा "नारायण"।
🔹 मरण का समय
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88 वर्ष की उम्र में मृत्यु निकट आई।
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यमदूत आए – पापों का हिसाब लेने।
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डर के मारे अजामिल ने ज़ोर से पुकारा –
“नारायण…!”
👉 वह बेटे को बुला रहा था, पर नाम तो भगवान का था!
🔹 विष्णुदूतों का आगमन
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चार विष्णुदूत आए – यमदूतों को रोका।
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बोले – "नाम-स्मरण से सारे पाप जल गए। इसे ले जाना अधर्म है।"
👉 यमराज ने भी बाद में आदेश दिया –
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“जो लोग भगवान का नाम लेते हैं, उन पर यम का कोई अधिकार नहीं।”
📌 अजामिल को मोक्ष मिला।
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वह फिर हरिद्वार गया, तपस्या की और भगवद्भक्त बनकर भगवान के धाम गया।
✅ भाग 3 – भगवान ऋषभदेव का उपदेश
👉 भगवान विष्णु ने ऋषभदेव रूप में जन्म लिया – राजा नाभि और रानी मेधा के पुत्र।
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ऋषभदेव ने 100 पुत्रों को जीवन-उपदेश दिया।
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सबसे बड़ा पुत्र भरत था – जिनके नाम से "भारतवर्ष" कहलाया।
🔹 उपदेश का सार
"मनुष्य जन्म मिला है – केवल भोगों के लिए नहीं।"
"यह दुर्लभ जीवन मोक्ष के लिए है।"
"संसार के सुख दुख क्षणिक हैं – भगवान में लगाओ मन।"
"तपस्या करो, संयम रखो, भक्ति करो।"
✅ उन्होंने राज-पाट त्याग दिया, साधु बनकर वन चले गए।
📌 अंत में भगवान के धाम चले गए – आदर्श जीवन की मिसाल।
🌼 इस दिन की कथा का सारांश
भाग | कथा | शिक्षा |
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1️⃣ | समुद्र मंथन | संघर्ष से ही अमृत (सफलता) मिलता है। भगवान विष्णु सदा युक्ति से कार्य करते हैं। |
2️⃣ | अजामिल | नाम जप से भी मुक्ति संभव है। अंतिम समय का स्मरण भी जीवन बदल सकता है। |
3️⃣ | ऋषभदेव | जीवन का उद्देश्य मोक्ष है, केवल भोग नहीं। तप, संयम, भक्ति आवश्यक हैं। |
🕉️ श्लोक स्मरण
"नाम मात्र से पापों का नाश हो जाए – यह केवल हरिनाम में संभव है।"
"धर्मः स्वनुष्ठितः पुँसां… न भक्ति: यद्यहैतुकी।"
“तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं…” – ऋषभदेव उपदेश