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भागवत सप्ताह - तीसरा दिन – ध्रुव और प्रह्लाद चरित्र (विस्तार से कथा) Bhagavata Saptah - Dhruva and Prahlad Character

 तीसरा दिन – ध्रुव और प्रह्लाद चरित्र (विस्तार से कथा)

✅ भाग 1 – ध्रुव चरित्र

👉 बहुत प्राचीन समय में राजा उत्तानपाद थे। उनकी दो रानियाँ थीं – सुनीति और सुरुचि।


सुनीति की संतान – बालक ध्रुव।


सुरुचि की संतान – उत्तम।


एक दिन छोटा ध्रुव राजसभा में अपने पिता की गोद में बैठना चाहता था।


सुरुचि ने ताना दिया:


“तुम्हें राजा की गोद में बैठने का अधिकार नहीं। अगर यह सुख चाहिए तो भगवान की तपस्या करके अगले जन्म में मेरी कोख से जन्म लेना!”


💔 यह सुनकर ध्रुव बहुत आहत हुए।


रोते हुए माँ सुनीति के पास गए।


माँ ने कहा – “बेटा! जो कुछ भी चाहिए, भगवान से मांगो। वही सर्वश्रेष्ठ हैं।”


✅ नारदजी से भेंट


रोते हुए ध्रुव वन जाने लगे।


बीच में नारद मुनि मिले।


नारद जी बोले – “तुम बहुत छोटे हो बेटा! घर जाओ।”


ध्रुव ने कहा – “नहीं महाराज! मुझे भगवान चाहिए। मुझे उनका दर्शन करना ही है।”


✨ नारद जी ने प्रसन्न होकर मंत्र दिया:


“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”


✅ ध्रुव की तपस्या


5 वर्ष के बालक ने गहरी तपस्या की।


प्रथम माह – केवल कंद-मूल खाए।


द्वितीय माह – केवल जल।


तृतीय माह – वायु पर निर्वाह।


चतुर्थ माह – स्थिर खड़े रहकर ध्यान।


पाँचवें माह – केवल भगवान के ध्यान में लीन, सांस तक रोक दी।


✅ भगवान प्रकट हुए


उनकी तपस्या से त्रिलोकी हिलने लगी।


भगवान विष्णु प्रकट हुए – चार भुजा, शंख, चक्र, गदा, पद्म।


ध्रुव ने आँख खोली – प्रभु सामने!


ध्रुव स्तब्ध – बोलना भूल गए।


भगवान ने दिव्य ज्ञान दिया – स्तुति की।


✅ भगवान का वरदान


भगवान बोले – “ध्रुव! तुम्हें अचल ध्रुवलोक मिलेगा, जहां से कोई लौटता नहीं।”


“तुम्हारा नाम अमर होगा। तुम्हारे नाम से लोग अपने बच्चों का नाम रखेंगे।”


“तुम्हें मोक्ष भी मिलेगा।”


✅ ध्रुव लौटे


माता को प्रणाम किया।


पिता ने गले लगाया।


जीवन भर धर्मपूर्वक राज किया।


अंत में ध्रुवलोक को प्राप्त हुए।


🌿 संदेश –


सच्ची लगन और भक्ति से भगवान मिलते हैं।


बालक भी भगवान को पा सकते हैं।


अपमान भी हमें भगवान की ओर ले जा सकता है।


✅ भाग 2 – प्रह्लाद चरित्र

अब कथा आती है भक्त प्रह्लाद की – जो भक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण माने जाते हैं।


👉 हिरण्यकशिपु नाम का असुरराज था।


उसका भाई हिरण्याक्ष भगवान वराह के हाथों मारा गया।


उसने भगवान विष्णु से बदला लेने की ठानी।


उसने कठोर तप किया, ब्रह्मा जी से वर मांगा:


“ना कोई मानव मारे, ना पशु, ना अंदर, ना बाहर, ना दिन, ना रात, ना अस्त्र, ना शस्त्र।”


उसे अजेय समझकर देवता डर गए।


उसने स्वर्ग जीत लिया।


तीनों लोकों में अत्याचार।


✅ प्रह्लाद का जन्म


हिरण्यकशिपु का पुत्र – प्रह्लाद।


गर्भ में ही नारद जी के उपदेश से भगवान का भक्त हो गया।


बालक होते हुए भगवान विष्णु में लीन रहता था।


“नारायण नारायण” जपता रहता था।


✅ हिरण्यकशिपु का क्रोध


उसने गुरु शुक्राचार्य के पुत्रों को कहा – “इसे पढ़ाओ।”


गुरु के बेटे – शंड और अमर्क ने पूछा – “राजधर्म क्या है?”


प्रह्लाद बोला – “सबसे बड़ा धर्म – भगवान विष्णु की भक्ति।”


✅ बार-बार समझाया, मारा-पीटा


पर प्रह्लाद नहीं डरा।


पिता ने पूछा – “तुझे यह भक्ति कौन सिखाता है?”


प्रह्लाद बोला – “भगवान हर जगह हैं, वही सिखाते हैं।”


✅ हत्या के प्रयास


विष दिलाया – विष्णु का नाम लेकर पी लिया, कुछ नहीं हुआ।


जहरीले नाग – नहीं काट पाए।


हाथी के पैर तले कुचलवाया – बच गया।


ऊँचाई से गिरवाया – कुछ नहीं हुआ।


अग्नि में डाला – अग्नि शीतल हुई।


✅ अंतिम वार्ता


हिरण्यकशिपु ने कहा – “कहाँ है तेरा भगवान?”


प्रह्लाद बोला – “पिता! भगवान हर जगह हैं – खंभे में भी।”


✅ नृसिंह अवतार


हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार किया – भगवान नृसिंह प्रकट हुए।


आधा नर, आधा सिंह।


न दिन न रात – संध्या।


न अंदर न बाहर – चौखट पर।


न अस्त्र न शस्त्र – नाखून से।


भगवान ने उसका वध किया।


✅ प्रह्लाद को वरदान


भगवान ने कहा – “मांगो बेटा वरदान।”


प्रह्लाद बोला – “मेरे पिता को मोक्ष दो।”


भगवान ने कहा – “तुम जैसे पुत्र से 21 पीढ़ियाँ तर जाती हैं।”


🌿 संदेश –


भगवान की भक्ति में अडिग रहो।


सच्चे भक्त की रक्षा भगवान स्वयं करते हैं।


क्षमा और करुणा – प्रह्लाद ने अपने अत्याचारी पिता को भी मोक्ष दिलाया।


🌸 👉 सारांश

✅ तीसरे दिन की कथा में दो आदर्श भक्तों की गाथा सुनाई जाती है:

🌿 ध्रुव – अपमान से प्रेरित होकर भगवान को पाने वाला बालक।

🌿 प्रह्लाद – अत्याचार सहकर भी भगवान विष्णु में अडिग रहने वाला भक्त।


यह दिन सिखाता है:


भगवान की भक्ति में उम्र बाधा नहीं।


कष्ट आने पर भी भक्ति मत छोड़ो।


भगवान अपने भक्तों की रक्षा अवश्य करते हैं।

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