दोस्तो धन और अन्य वस्तुओं का दान करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। आज भी बहुत से लोग दान करते हैं। दान करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है और दुखों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही, जरूरतमंद लोगों को भोजन और अन्य आवश्यक चीजें भी मिल जाती हैं। दान किसे देना चाहिए, इस पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। जिनके पास पर्याप्त धन और सुख-सुविधाएं हैं, उन्हें छोड़कर उन लोगों की मदद करना चाहिये जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता है। आइये आपको एक सच्चे संत की कहानी से बताते कि दान किसे देना अधिक उचित होता है।
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दीपावली पूजन विधि
दीपावली धन और समृद्धि का त्यौहार हैं, जिसे आमतौर पर दीवाली भी कहा जाता है, हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को सजाकर रंग बिरंगे बत्तियों और दीपों से सजाते हैं। दीपावली पूजन में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाज होते हैं। यहां कुछ सामान्य पूजन विधियाँ दी जा रही हैं:
इस त्यौहार में गणेश भगवान और माता लक्ष्मी के साथ ही साथ धनाधिपति भगवान कुबेर, सरस्वती और काली माता की भी पूजा की जाती है। सरस्वती और काली भी माता लक्ष्मी के ही सात्विक और तामसिक रूप हैं। जब सरस्वती, लक्ष्मी और काली एक होती हैं तब महा लक्ष्मी बन जाती हैं।
गायत्री महामंत्र, भावार्थ, उत्पत्ति, स्वरूप एवं महत्व
गायत्री महामंत्र, जिसे "गायत्री मंत्र " भी कहा जाता है, एक प्राचीन और महत्वपूर्ण मंत्र है। इसका वर्णन वेदों में मिलता है, विशेषकर ऋग्वेद में। इस मंत्र का पाठ मानसिक शांति, ज्ञान की प्राप्ति और आत्मिक विकास के लिए किया जाता है। हिंदू धर्म में उपनयन संस्कार के लिए यह मंत्र बहुत महत्वपूर्ण है। धर्मशास्त्रों में गायत्री महामंत्र की अपार महिमा एवं सिद्धि का गुणगान किया गया है। यह एक प्राचीन वैदिक प्रार्थना है जो सूर्य के दिव्य प्रकाश का आह्वान करती है, ज्ञान और स्पष्टता की मांग करती है। मान्यता के अनुसार गायत्री मंत्र पहली बार संस्कृत में ऋग्वेद में दर्ज किया गया था।
गायत्री महामंत्र के इस प्रकार से है
"ॐ भूर् भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।"
गायत्री मंत्र का अर्थ है,
'हे प्राणस्वरूप, दुःखहर्ता और सर्वव्यापक आनंद को देने वाले प्रभो! आप सर्वज्ञ और सकल जगत के उत्पादक हैं. हम आपके उस पूजनीयतम, पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है'
मेष (Aries) राशि के व्यक्ति का गुण, स्वभाव, व्यक्तित्व करियर,स्वास्थ्य रिश्ते और जीवनसाथी
जिन व्यक्तियों के जन्म समय में निरयण चन्द्रमा मेष राशि में संचरण कर रहा होता है, उनकी मेष राशि मानी जाती है, जन्म समय में लगन में मेष राशि होने पर भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। मेष राशि के लोगों का स्वामी ग्रह मंगल होता है. मेष राशि वालो का राशि नाम चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ से शुरू होता है।
मेष लगन मे जन्म लेने वाला जातक दुबले पतले शरीर वाला, अधिक बोलने वाला, उग्र स्वभाव वाला, रजोगुणी, अहंकारी, चंचल, बुद्धिमान, धर्मात्मा, बहुत चतुर, अल्प संतति, अधिक पित्त वाला, सब प्रकार के भोजन करने वाला, उदार, कुलदीपक, स्त्रियों से अल्प स्नेह, इनका शरीर कुछ लालिमा लिये होता है।
सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन काल के16 संस्कार
सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन काल के सोलह संस्कार होते है आइये जानते हैं इन सोलह संस्कारों का मतलब और इनका महत्व।
गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तो जातकर्म च।
नामक्रियानिष्क्रमणेऽन्नाशनं वपनक्रिया॥
कर्णवेधो व्रतादेशो वेदारम्भक्रियाविधिः।
केशान्तः स्नानमुद्वाहो विवाहाग्निपरिग्रहः॥
त्रेताग्निसंग्रहश्चेति
संस्काराः षोडश स्मृताः।
1. गर्भाधान संस्कार
हमारे शास्त्रों में मान्य सोलह संस्कारों में गर्भाधान पहला है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम कर्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। गृहस्थ जीवन का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ठ सन्तानोत्पत्ति है।
देवी कवच (Devi Durga Kavach)
॥ देवी कवच ॥
विनियोग –
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् , दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥
ॐ नमश्चण्डिकायै ॥
अर्थ – ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।
[ मार्कण्डेय उवाच ]
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥
अर्थ – [ मार्कण्डेय जी ने कहा ] पितामह ! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये ।
कीलक स्त्रोतम (Kilak Stotram in Hindi & Sanskrit)
॥ अथ कीलकम् ॥
ॐ इस श्रीकीलक मंत्र के शिव ऋषि, अनुष्टुप् छन्द, श्री महासरस्वती देवता हैं।
श्री जगदम्बा की प्रीति के लिए सप्तशती के पाठ के जप में इसका विनियोग किया जाता है।
ॐ नम श्चण्डिकायै॥
ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।
मार्कण्डेय जी कहते हैं – विशुद्ध ज्ञान ही जिनका शरीर है, जो कल्याण-प्राप्तिके हेतु हैं तथा अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र का मुकुट धारण करते हैं, उन भगवान शिव को नमस्कार है ॥1॥
मन्त्रों का जो अभिकीलक है, अर्थात् मन्त्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले शाप रूपी कीलक का जो निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिये। (और जानकर उसकी उपासना करनी चाहिये) यद्यपि सप्तशती के अतिरिक्त अन्य मन्त्रों के जप में भी जो निरन्तर लगा रहता है, वह भी कल्याण का भागी होता है ॥2॥
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