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Palmistry - सन्तान रेखा एवं फल

सन्तान रेखाएँ बुधस्थान में विवाह रेखा के उपरी स्थान में कनिष्ठता अंगुली के नीचे स्थित होती है। सन्तान रेखाएँ छोटी – छोटी एवं सूक्ष्म धारियों के रूप में विवाह रेखा से उठकर कनिष्ठिका मूल की ओर जाती है। इन रेखाओं एवं अन्य लक्षणों के आधार पर यह बताया जा सकता है कि जातक के कितने बच्चे है और भविष्य में कितने और होंगे।पुरुषों की बजाय महिलाओं के हाथों में संतान रेखा ज़्यादा स्पष्ट होती है।

 सन्तान के संबंध में विचार करते समय शुक्र क्षेत्र का अध्ययन करना जरूरी होता है,कि शुक्र क्षेत्र के विस्तृत होने से व्यक्ति में सन्तानोत्पादन क्षमता अधिक होती है। यदि क्षेत्र जीवन रेखा व्दारा संकीर्ण कर दिया गया हो और उन्नत न हो कर दबा हुआ हो तो जातक में उस व्यक्ति की अपेक्षा, जिसका शुक्र क्षेत्र विस्तृत और उन्नत हो, सन्तानोत्पादन क्षमता कम होती है।

सन्तान रेखाओं की प्रकृति एवं स्वरूप 

(सन्तान रेखाएँबहुत ही सूक्ष्म होती है, इनका अध्ययन आवर्धक लैस की सहायता से करना चाहिए।

 

1.        सामान्यतःयदि सन्तान रेखाएँ चौड़ी हो, तो पुत्रसूचक और पतली हो, तो पुत्रीसूचक होती है।

2.     पहली सन्तान के लिए करतल के किनारे पहली रेखा स्थित होती है, इसलिए पहली सन्तान के स्वास्थ्य व प्रभाव आदि का अध्ययन किनारे की रेखा से करना चाहिए। इसी प्रकार दूसरी, तीसरी संखया की संतानों के लिए करतल के भीतर की ओर स्थित रेखाओं को देखना चाहिए।

3.     सन्तान रेखाएँ गृह क्षेत्र के किस भाग को स्पर्श करती है, यह देखकर सन्तान के प्रभाव एवं महत्व का अनुमान लगाना चाहिए।

4. रेखाओ की बनावट में आने वाली विक्रतियो व चिन्हों के लक्षणों से सन्तान के स्वास्थ्य का पता लगता है। 

5. यदि एक रेखा अन्य रेखाओ की अपेक्षा अधिक बड़ी और सशक्त हो, तो यह समझना चाहिए कि उस रेखा से संबंध्द सन्तान व्दारा माता – पिता को अपेक्षाकृत अधिक सम्मान, सहयोग, सुख व प्रसन्नता मिलेगी

 6. पुरुषो की अपेक्षा माताओं के हाथो में सन्तान रेखाएँ अधिक स्पष्ट होती है, क्योकि माताओं का स्नेह अपने बच्चो के प्रति अधिक रहता है। 

सन्तान रेखा के गुण – दोष

1.  यदि सन्तान रेखाएँ स्पष्ट रूप से अंकित हो, तो बच्चे स्वस्थ होते है और अगर अस्पष्ट, लहरदार, कटी – फटी व दोषयुक्त होने से, बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

2.  यदि इन रेखाओ के आरम्भ में व्दीप चिन्ह हो, तो बच्चे अपने आरंभिक जीवन में बहुत निर्बल होते है। यदि बाद में रेखा स्पष्ट हो, तो उनका स्वास्थ्य ठीक हो जाता है।

 3.  यदि रेखा के अंत में व्दीप चिन्ह हो, तो बच्चा जीवित नही रहता है

4.  सन्तान रेखा में उपस्थित काला बिंदु, काला धब्बा, क्रास या नक्षत्र चिन्ह भी सन्तान की मृत्यु का संकेत देते है।

5.  यदि सन्तान रेखा के बीच  में काला धब्बा या काला बिंदु हो और विवाह रेखा को स्पर्श करने से पहले कोई आड़ी रेखा उस सन्तान रेखा को काट रही हो, तो यह बच्चे की न्रशंस हत्या का संकेत है।

6.  आड़ी रेखाओ से या क्रास चिन्ह से कटी हुई सन्तान रेखा भी बालक की मृत्यु का संकेत देती है।

7.  छोटे – छोटे रेखाखंडो से बनी हुई सन्तान रेखा बालक के जन्म से ही अत्यन्त निर्बल स्वास्थ्य की परिचायक होती है। ऐसी रेखा से सम्बन्ध सन्तान का अधिक दिन जिन्दा रहना संभव नही होता।

8.  विवाह रेखा को स्पर्श करता हुआ सन्तान रेखा पर क्रास चिन्ह गर्भपात या गर्भ में ही बालक की मृत्यु का संकेत है।

सन्तान सूचक अन्य मत एवं लक्षण 

1.  जिस महिला के हाथ में मछली का चिन्ह स्पष्ट रूप से अंकित हो, वह पुत्रवती होती है

2.  यदि हृदय रेखा बुध क्षेत्र पर हो या तीन शाखाओ में विभक्त हो जाये, तो जातक संतानहीन नहीं होता।

3.  ऐसे पुरुष और स्त्री जिनके करतल चौड़े हो व सभी प्रधान रेखाएँ स्पष्ट हो, संतानहीन नही होते।

4.  जिस महिला के हाथ की रेखाओ का रंग लाल हो, वह पुत्रवती होती है।

5.  त्रिशूल, कमल, मछली के शुभ चिन्ह  हाथ में हो, तो संतानहीन नही होती।

6.  अंगूठे के मूल की श्रंखलाकार रेखा में जितने बड़े व्दीप चिन्ह होते है, वे पुत्रो का और छोटे व्दीप चिन्ह पुत्रियों का संकेत देते है।

7.  उच्च मंगल क्षेत्र में हृदय रेखा के नीचे जितनी आदि रेखाएँ स्पष्ट हो, उतनी ही संख्या पुत्र – पुत्रियों की होती है ।

8.  हृदय रेखा के आरम्भ में उच्च मंगल क्षेत्र की ओर निकलने वाली छोटी शाखाए पुत्रो की संख्या प्रकट करती है

9.  मणिबंध की पहली रेखा करपृष्ट की ओर निकलकर करतल में प्रवेश करने वाली रेखाएँ इस बात का संकेत देती है कि जातक को पुत्र और पौत्रों का सुख मिलेगा।

 10. कनिष्ठिका और अनामिका अंगुली के दूसरे पर्व में उपस्थित लम्बवत रेखाएँ सन्तान सूचक होती है।

11. अंगूठे के प्रथम पर्व में स्थित लम्बवत रेखाएँ सन्तान सूचक होती है।

 12.         यदि हथेली में संतान रेखा लहराती हुई हो तो संतान अवगुणी होती है।

 

13.    महिलाओं के हाथो में तर्जनी अंगुली या अनामिका के प्रथम पर्व पर स्थित लम्बवत रेखाएँ संतानों की संख्या प्रकट करती है।

 

14.    योगी, साधू , सन्यासियों, भिक्षुणियो, नन आदि ब्रम्हचारी व अविवाहित व्यक्तियों के हाथो में सन्तान रेखाओ के व्दारा उनके शिष्यों की संख्या एवं शिष्य – सुख का विचार करना चाहिए।

 15.    यदि हथेली में संतान रेखा लहराती हुई हो तो संतान अवगुणी होती है।

 16.    यदि मणिबंध की गणना सम संख्या मे आये तो प्रथम संतान कन्या होती है और विषम संख्या मे आये तो पुत्र होगा।

 17.    यदि हथेली में संतान रेखा अध‌िक उभरी और स्पष्ट हो तो व्यक्त‌ि को उसकी संतान से अध‌िक स्नेह और सुख म‌िलता है। इसी कारन से व्यक्त‌ि का क‌िसी खास संतान से अध‌िक लगाव होता है और उनसे सुख भी म‌िलता है।

18.    यदि संतान रेखा विवाह रेखा को काट दे तो संतान के आचरणहीन, माता-पिता को कष्ट देने वाले योग बनते हैं।

 19.    यदि किसी पुरुष की हथेली में संतान रेखा नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं क‌ि उनकी संतान नहीं होगी। यदि पत्नी की हथेली में संतान रेखा है तो संतान सुख मिलता है लेक‌िन संभव है क‌ि बच्चों का लगाव मां से अध‌िक होता है। 

20.    यदि संतान रेखाओं मे से कोई एक रेखा अधिक लंबी और स्पष्ट हो तो माता पिता के लिये सभी संतनों में से कोई एक संतान अधिक महत्वपूर्ण होगी।

21.    यदि पति पत्नी दोनों के हाथ में संतान रेखा स्पष्ट हो तो जातक बच्चों को बहुत प्यार करता है और उसका स्वभाव बहुत ही स्नेही होता है।

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